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टूटे हुए घर, बिखरी हुई जिंदगियां, अब चिशोती को सता रही है इस बात की चिंता?

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Kishtwar Chashoti Ground report : किश्तवाड़ जिले का कभी शांत रहने वाला चिशोती गांव मलबे और कीचड़ में तब्दील हो गया है, और अब बचाव दल की गड़गड़ाहट और पीछे छूट गए लोगों की हृदय विदारक चीखों ने इसकी खामोशी को तोड़ दिया है। चिशोती में अब टूटे हुए घरों और बिखरी हुई जिंदगियों का नजारा है। जो लोग बच गए हैं, उनके लिए अब डर सिर्फ इतना है कि जो खो गया, वह आगे क्या हो सकता है।

गुरुवार को अचानक और तेज बारिश के कारण हुए विनाशकारी बादल फटने से आसपास की पहाड़ियों से पानी का एक विशाल उफान आ गया। जो कभी एक पहाड़ी नाला था, वह कीचड़ और मलबे की एक भयंकर दीवार में बदल गया, जिसने कुछ ही सेकंड में घरों, मवेशियों और लोगों को बहा ले गया।

आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, मरने वालों की संख्या 250 से ज्यादा है, और कई लोग अभी भी लापता हैं। इस आपदा के कारण मचेल माता यात्रा को तत्काल स्थगित करना पड़ा, जो आमतौर पर इस क्षेत्र को जयकारों और रंगों से भर देती है। अभी तक 70 के करीब शव बरामद किए जा सके थे और सोशल मीडिया पर सैंकड़ों परिवार अपनों की तलाश के लिए गुहार लगा रहे थे।

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उन्होंने कहा कि इस पत्रकार ने कई बचे लोगों से बात की, जिनमें से कई अभी भी सदमे और अविश्वास में हैं। रमेश कुमार ने कांपती आवाज में कहा था कि ऐसा लगा जैसे आसमान फट गया हो। हमने एक जोरदार धमाका सुना। इससे पहले कि हम दौड़ पाते, पानी और कीचड़ का एक तेज बहाव नीचे आ गिरा। मैंने लोगों को उफनती नदी में लकड़ी के टुकड़ों की तरह बहते देखा। हम कुछ नहीं कर सके।

अपनी छोटी बेटी को गोद में लिए मीना देवी ने उस पल का वर्णन करते हुए कहा, 'मैं चाय बना रही थी कि तभी बाहर से चीख-पुकार सुनाई दी। कुछ ही सेकंड में पानी चारों तरफ फैल गया। मैंने अपनी बच्ची को गोद में उठाया और भागी, लेकिन जोर इतना तेज था कि हम जमीन पर गिर पड़े। किसी तरह, एक पड़ौसी ने हमें सुरक्षित बाहर निकाला।'

पहाड़ों की बारिश के आदी स्थानीय लोगों का भी कहना है कि उन्होंने इस पैमाने पर तबाही पहले कभी नहीं देखी। मचेल यात्रा की व्यवस्था में शामिल विजय कुमार कहते हैं, हमने पहले भी भारी बारिश देखी है, लेकिन यह अलग थी। ऐसा लग रहा था जैसे पहाड़ ही फट गया हो। यात्रा रोकना ही एकमात्र समझदारी भरा फैसला था, क्योंकि अब रास्ते बहुत खतरनाक हो गए हैं। ध्यान जान बचाने पर होना चाहिए।

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सेना, एसडीआरएफ, जम्मू-कश्मीर पुलिस और आपदा प्रतिक्रिया एजेंसियों के जवान खतरनाक इलाकों और फिर से बारिश के मंडराते खतरे के बीच चौबीसों घंटे बचाव अभियान चला रहे हैं। हमारा हर कदम जोखिम भरा है, एक बचावकर्मी का कहना था, जिसका चेहरा पसीने और धूल से सना हुआ था। मिट्टी अस्थिर है और कभी भी और भूस्खलन हो सकता है।

घायलों में शीतल नाम की एक युवती भी शामिल है, जो उड़ते हुए मलबे की चपेट में आकर बेहोश हो गई। मुझे नहीं पता कि मेरे माथे पर पत्थर लगा, टहनी लगी या लकड़ी का लट्ठा। उसने अस्पताल के बिस्तर से कहा कि मैं कीचड़ भरे पानी की लहरों में बह गई। मैंने अपने आस-पास के लोगों को बहते देखा। फिर सब कुछ काला हो गया।

चिशोती में अब टूटे हुए घरों और बिखरी हुई जिंदगियों का नजारा है। जो लोग बच गए हैं, उनके लिए अब डर सिर्फ इतना है कि जो खो गया, वह आगे क्या हो सकता है। हम पहाड़ों में रहते हैं, हम प्रकृति का सम्मान करते हैं, रमेश ने अपने गांव के खंडहरों से बहते गंदे पानी को देखते हुए कहा। लेकिन उस दिन प्रकृति क्रोधित थी और हम उसके सामने असहाय थे।

edited by : Nrapendra Gupta

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