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मप्र में स्कूली शिक्षा का इस्लामीकरण : क से काबा, म से मस्जिद पढ़ाया जना उजागर हुआ

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रायसेन, 8 अगस्त (Udaipur Kiran) । शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक समझ, संवेदना और सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ना होता है, लेकिन जब शिक्षा ही ‘जिहादी’ हो जाएगी, तब सवाल गहरे हो जाते हैं। मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में एक निजी स्कूल में नर्सरी कक्षा की किताबों में क से काबा, म से मस्जिद, न से नमाज, और औ से औरत हिजाब में थी जैसे शब्द पढ़ाए जाने का मामला सामने आया है।

उक्‍त मामला तब उजागर हुआ जब एक छात्रा के परिजन ने उसकी किताबें देखीं और उसमें ‘औ से औरत हिजाब में थी’ ने उन्हें चौंका दिया। उन्होंने देखा कि पारंपरिक क से कबूतर या म से मछली की जगह इस्लामी मजहबी प्रतीकों को स्थान दिया गया है। इस पर परिजनों ने तुरंत आपत्ति ली और सूचना अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को दी। जिसके बाद संगठन के कार्यकर्ताओं ने स्कूल में पहुंचकर विरोध जताया।

अभाविप कार्यकर्ताओं ने इसे ‘सनातन संस्कृति के विरुद्ध षड्यंत्र’ बताते हुए स्कूल की मान्यता रद्द करने की मांग की। उन्‍होंने बेबी कॉन्‍वेन्‍ट स्कूल पहुंचकर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। कुछ कार्यकर्ताओं ने स्कूल की प्राचार्य ई.ए. कुरैशी पर विद्यालय में शिक्षा का इस्‍लामीकरण किए जाने की बात कही । धीरे-धीरे इसे लेकर जब हिन्‍दू आक्रोश बढ़ने लगा तभी थाना प्रभारी नरेंद्र गोयल मौके पर पहुंचे और प्रदर्शनकारियों को समझाइश देकर औपचारिक शिकायत दर्ज करने की सलाह दी।

बच्‍चों के मन में बोया जा रहा है मजहबी शिक्षा का बीज

अभाविप के विभाग संयोजक अश्विनी पटेल ने कहा, “हमने बचपन में जो सीखा था, उससे अलग यह नई शब्दावली बच्चों को सांस्कृतिक रूप से भ्रमित कर रही है। विद्यार्थी परिषद इसका पुरजोर विरोध करती है।” उन्‍होंने कहा कि “हमारी मांग है कि इस विद्यालय की मान्‍यता निरस्‍त की जाए। विद्यालय के बारे में बताया गया है कि यहां 500 से अधिक बच्‍चे पढ़ते हैं और विद्यालय कक्षा आठवीं तक संचालित है। यहां इन छोटे बच्‍चों के मन में मजहबी शिक्षा का बीज बोया जा रहा है, जबकि ये कोई मदरसा नहीं है और फिर पढ़नेवाले बच्‍चे भी अधिकांश हिन्‍दू घरों से आते हैं, हम इस मजहबी सोच को शिक्षा कें मंदिर में सफल नहीं होने देंगे।”

अश्विनी पटेल का कहना है कि “इस प्रकरण की विद्यार्थी परिषद, राष्‍ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) , राज्‍य बाल आयोग, मानवाधिकार आयोग और शिक्षा विभाग में प्रमुख सचिव से लेकर मंत्री तक शिकायत करेंगे। इतना ही नहीं जिस समिति के माध्‍यम से ये स्‍कूल चल रहा है, उसका पता लगाकर रजिस्ट्रार, स्वयंसेवी संस्था, सोसाइटी रजिस्ट्रेशन ऐक्ट के नियमों के अन्तर्गत पंजीकरण कार्यालय में शिकायती पत्र लिखेंगे, ताकि स्‍कूल संचालकों की मान्‍यता रद्द की जा सके। दूसरी आरे स्कूल की प्राचार्य ई.ए. कुरैशी इस संबंध में जो सफाई दे रही हैं, वह किसी भी स्‍तर पर स्‍वीकार्य योग्‍य नजर नहीं आ रही। उनका कहना है, वे 30 वर्षों से शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत हैं और उनका उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं था। यह किताब तो एक बच्‍चे के लिए आई थी। जबकि विद्यार्थी परिषद का आरोप है कि अधिकांश बच्‍चों को यही किताब बांटी गई है।

राज्‍य में कई तरह के प्रयोग इस्‍लामिक जिहाद के नाम पर चल रहे

विश्‍व हिन्‍दू परिषद (विहिप) के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता विनोद बंसल ने भी इस पर गहरी आपत्‍त‍ि ली है। उन्‍होंने कहा कि मध्‍य प्रदेश में यह घटना कोई पहली नहीं है। बीते वर्षों में प्रदेश के विभिन्न जिलों में प्राथमिक शिक्षा से जुड़े ऐसे कई विवाद सामने आए हैं, जहाँ बच्चों को पढ़ाई के नाम पर मजहबी या वैचारिक प्रभावों की दिशा में ढाला जा रहा था। रायसेन की उक्‍त घटना ने एक बार फिर साबित किया है कि राज्‍य में कई तरह के प्रयोग इस्‍लामिक जिहाद के नाम पर चल रहे हैं, कहीं लव जिहाद चल रहा है तो कहीं लैण्‍ड जिहाद तो कहीं कन्‍वर्जन जिहाद, कहीं एजुकेशन के स्‍तर पर यह शिक्षा जिहाद हो रहा है।

उन्‍होंने कहा, विहिप मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी से ये मांग करती है कि इस तरह की गलत अशिक्षा जहां भी दी जा रही है, उन सभी की खोजबीन करके उन पर कड़ा एक्‍शन लें, क्‍योंकि कभी दमोह से तो कभी ग्‍वालियर, जबलपुर, सागर जैसे कई शहरों से इस प्रकार के शिक्षा क्षेत्र में एक के बाद एक मामले उजागर हो रहे हैं, जिनमें कि एक विशेष समुदाय का सक्रिय होना पाया जा रहा है। उनके टार्गेट पर हिन्‍दू एवं अन्‍य गैर मुस्‍लिम समाज है।

शिक्षा का उद्देश्‍य व्‍यक्‍ति निर्माण है न कि अलग विचार से भर देना

भोपाल के शिक्षा विशेषज्ञ एवं मनोवैज्ञानिक डॉ. राजेश शर्मा का कहना है कि बच्‍चे मन के भोले एवं सच्‍चे होते हैं, बाल मन को जो बताया जाता है, वे उसे ही सच मानते हैं, ऐसे में जब इस तरह की शिक्षा चित्रों के माध्‍यम से और शब्‍दों के द्वारा दी जा रही हो तो स्‍वभाविक है इसका प्रभावी असर उनके बाल मन पर पड़ेगा। इसलिए किसी भी विद्यालय में इस तरह की शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए जो विवाद का कारण बने। जो ऐसा करते हैं, उन्‍हें यह नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा का उद्देश्‍य व्‍यक्‍ति निर्माण है, न कि किसी के मन में एक अलग विचार भर देना।

इस संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी डीडी रजक ने मामले को गंभीर मानते हुए कहा कि संबंधित सामग्री की जांच की जाएगी। उन्होंने बताया कि यदि किताबों में आपत्तिजनक सामग्री पाई जाती है तो स्कूल की मान्यता रद्द करने के लिए उच्च अधिकारियों को पत्र लिखा जाएगा। वहीं, बतादें कि यह विवाद सिर्फ एक किताब की सामग्री का नहीं है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में विचारधारात्मक दखल के एक लंबे सिलसिले की कड़ी है। मध्य प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में जो घटनाएँ सामने आई हैं, वे शिक्षा को विचारधारा की प्रयोगशाला में बदलते हुए दिखाती हैं।

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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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