देहरादून, 22 अप्रैल . अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स (एम्स) ऋषिकेश में अब पैरों में रक्त का प्रवाह कम होने पर फीमोरल धमनी (जांघ की सबसे बड़ी रक्त वाहिका) में ब्लॉकेज की समस्या का एथेरेक्टॉमी तकनीक से इलाज किया जा सकेगा. एम्स ऋषिकेश ने हाल ही में इस प्रक्रिया से इलाज में सफलता पाई है. इससे बाईपास सर्जरी से बचा जा सकता है. साथ ही रक्त वाहिका में स्टंट डालने की आवश्यकता भी नहीं होती.
एम्स ऋषिकेश ने पहली सुपरफिशियल फेमोरल आर्टरी (एसएफए) एथेरेक्टोमी प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है. संस्थान के डायग्नोस्टिक और इंटरवेंशन रेडियोलॉजी विभाग (डीएसए लैब) ने अप्रैल के पहले सप्ताह में देहरादून के रहने वाले 68 वर्षीय रोगी का इस विधि से सफल इलाज कर विशेष उपलब्धि हासिल की. रोगी के पैरों की नसों में ब्लॉकेज के कारण उसे चलने-फिरने में दर्द के साथ दिक्कत थी और उसके पैरों का रंग काला पड़ गया था.
’फीमोरल धमनी एथेरेक्टोमी’ इलाज की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जांघ की सबसे बड़ी धमनी (फीमोरल धमनी) से ब्लॉक हटाया जाता है. आमतौर पर यह तब किया जाता है जब एथेरोस्क्लेरोसिस के कारण धमनी में रुकावट हो जाती है और पैरों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है.
रेडियोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अंजुम बताती हैं कि यह प्रक्रिया परिधीय धमनी रोग (पीएडी) से पीड़ित रोगियों के लिए विशेष फायदेमंद है. इससे उनके इलाज में काफी आसानी होगी. ऑपरेटिंग विशेषज्ञ डॉ. उदित चौहान ने बताया कि ’एसएफए एथेरेक्टोमी’ न्यूनतम इनवेसिव एंडोवास्कुलर तकनीक है जिसे सुपरफिशियल फेमोरल आर्टरी से एथेरोस्क्लेरोटिक प्लेक को हटाने के लिए डिजाइन किया गया है. इस प्रक्रिया से रोगी के पैरों में रक्त प्रवाह बेहतर हो जाता है और दर्द व अन्य लक्षणों में जल्द सुधार होता है. पैरों में ब्लॉकेज की समस्या वाले रोगी अस्पताल के पांचवें तल पर स्थित डीएसए लैब में आकर इलाज के बारे में परामर्श ले सकते हैं.
एम्स ऋषिकेश के कार्यकारी निदेशक प्रो. मीनू सिंह ने बताया कि एसएफए एथेरेक्टॉमी की शुरुआत करके एम्स ऋषिकेश ने न केवल अपनी इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी क्षमताओं को बढ़ाया है अपितु अन्य नए एम्स संस्थानों के सम्मुख मिसाल कायम की है.
/ Vinod Pokhriyal
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