Prayagraj, 31 अक्टूबर (Udaipur Kiran) . इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने करेलाबाग क्षेत्र में चल रही शराब की दुकानों के विरुद्ध दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी है.
यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने दिया है. कोर्ट ने औद्योगिक श्रमिक बस्ती करेलाबाग निवासी समीर बनर्जी व अन्य की याचिका पर सुनवाई के बाद मामले में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए कहा कि Uttar Pradesh आबकारी की दुकानों की संख्या और स्थिति नियमावली 1968 के तहत आवासीय कालोनी का तात्पर्य विधिक रूप से धृत भूमि पर विकसित और निर्मित ऐसी किसी कालोनी से है, जिसके मानचित्र विधि द्वारा मान्यता प्राप्त सक्षम प्राधिकारी द्वारा समुचित रूप से अनुमोदित किए गए हों. जहां बिखरे हुए मकान या सरकारी आवासीय क्वार्टर हों और साथ में व्यवसायिक प्रतिष्ठान भी हों तो ऐसी स्थिति को नियम 5(4)(क) के स्पष्टीकरण 4 के अनुसार आवासीय कालोनी नहीं माना जा सकता.
याचिका में कहा गया था कि करेलाबाग क्षेत्र में शराब की दुकानें आवासीय कालोनी के निकट स्थित हैं. कोर्ट ने आबकारी विभाग के प्रतिशपथ पत्र, स्थल निरीक्षण रिपोर्ट एवं प्रस्तुत साक्ष्यों के परीक्षण से पाया कि क्षेत्र में शराब दुकानें कई दशकों से संचालित हैं. उनके लाइसेंस राज्य की वार्षिक आबकारी नीति के अनुरूप नवीनीकृत-प्रदत्त होते रहे हैं.
रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से पता चलता है कि एक या दूसरे याची के कुछ व्यक्तिगत हित और-या एक या दूसरे निजी प्रतिवादी के साथ उनकी व्यक्तिगत दुश्मनी इस मामले में शामिल हो सकते हैं. खासकर जब उच्च किराया लेने के आरोप याचिका में लगाए गए हैं. इस मामले में आबकारी विभाग की ओर से अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता राजीव सिंह और जिला आबकारी अधिकारी सुशील मिश्र, आबकारी निरीक्षक शैलेंद्र कुमार तिवारी एवं आबकारी निरीक्षक सेक्टर-एक राजमणि ने पैरवी की.
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
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