Next Story
Newszop

टोंक की शाही जामा मस्जिद की दिल्ली जामा मस्जिद से तुलना क्यों होती है? वीडियो में जानिए वो रूहानी कारण जो इसे बनाते हैं खास

Send Push

राजस्थान का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक शहर — टोंक, न सिर्फ अपनी हवेलियों, महलों और मीठे खरबूजों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां स्थित शाही जामा मस्जिद अपने स्थापत्य वैभव, धार्मिक महत्व और ऐतिहासिक विरासत के कारण भी भारत भर में प्रसिद्ध है। खास बात यह है कि इस मस्जिद की तुलना अक्सर दिल्ली की प्रसिद्ध जामा मस्जिद से की जाती है। आखिर ऐसा क्यों? क्या वास्तुशिल्प की समानता इसकी वजह है या फिर कोई और गहरा रूहानी रहस्य इसमें छिपा है? आइए इस लेख में 800 शब्दों में विस्तार से जानते हैं।


टोंक का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
टोंक शहर की स्थापना 1746 से 1834 के बीच पश्तून मूल के नवाब मोहम्मद अमीर खान ने की थी। यह शहर बनास नदी के किनारे बसा है और इसे "राजस्थान का लखनऊ" भी कहा जाता है, क्योंकि यहां उर्दू, फारसी और नवाबी संस्कृति का गहरा प्रभाव है। यह शहर लंबे समय तक मुस्लिम नवाबों के शासन में रहा, जिनका रुझान कला, साहित्य और स्थापत्य की ओर था।

टोंक की शाही जामा मस्जिद का इतिहास
टोंक की शाही जामा मस्जिद का निर्माण नवाब अमीर खां ने 1244 हिजरी (लगभग 1829 ईस्वी) में प्रारंभ करवाया था। यह मस्जिद नवाब वजीर-उद-दौला के काल में 1289 हिजरी के आसपास पूर्ण हुई। यह मस्जिद टोंक के केंद्र में दो सड़कों के संगम पर बनी है — एक रास्ता नवाब के महल की ओर जाता है, और दूसरा कोटा-जयपुर मार्ग से जुड़ता है।इस मस्जिद की सबसे खास बात है कि इसे पूर्णतः मुगल और राजपूत स्थापत्य शैली में बनाया गया है, जिसमें संगमरमर, मीनाकारी, सुनहरी चित्रकारी और कुरानिक आयतों की सजावट देखने को मिलती है। इसने अपने निर्माण के बाद ही वास्तुकला प्रेमियों और धार्मिक आस्थावानों को समान रूप से आकर्षित करना शुरू कर दिया था।

दिल्ली की जामा मस्जिद से तुलना क्यों?
अब सवाल यह है कि टोंक की जामा मस्जिद की तुलना दिल्ली की जामा मस्जिद से क्यों की जाती है। इसके पीछे कुछ ठोस और रोचक कारण हैं:

वास्तुशिल्प समानता:
टोंक की मस्जिद और दिल्ली की मस्जिद दोनों में मुगल स्थापत्य शैली का प्रभाव स्पष्ट दिखता है — ऊंचे मंच, विशाल गुम्बद, नक्काशीदार दीवारें, कुरान की आयतों से सजी दीवारें, और मीनारें।

हौज (जलाशय) का अंतर:
दिल्ली की जामा मस्जिद में वुजू (अजु) के लिए हौज मस्जिद के मध्य में है, जबकि टोंक की मस्जिद में यह हौज दक्षिण-पश्चिम कोने में बना है। यह एक वास्तुशिल्पीय भिन्नता है जो दोनों को अलग-अलग पहचान देती है।

आध्यात्मिक अनुभव:
टोंक की मस्जिद में प्रवेश करते ही जो रूहानी शांति और नज़ारा मिलता है, वह दिल्ली की मस्जिद के समान ही दिव्य और मन को छू लेने वाला है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां इबादत से मनोकामनाएं जल्द पूरी होती हैं।

मीनारों और गुम्बदों की विशालता:
टोंक की मस्जिद की चार ऊंची मीनारें और तीन प्रमुख गुम्बद इसे दिल्ली की मस्जिद से जोड़ती हैं, हालांकि दिल्ली की मस्जिद का आकार और प्रसिद्धि अधिक है, लेकिन टोंक की मस्जिद की कलात्मकता किसी भी रूप में कम नहीं।

रूहानी रहस्य जो आपको कर देंगे हैरान
टोंक की जामा मस्जिद के साथ अनेक रूहानी विश्वास जुड़े हुए हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार:
यहां की मीनारों से अज़ान की आवाज दूर-दूर तक जाती थी, जिससे मुसलमानों को समय पर नमाज़ की सूचना मिलती थी।
मस्जिद के अंदर कुरान की जो आयतें उकेरी गई हैं, उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे पूरा परिसर एक जीवंत कुरान बन गया हो।
सोने और नीलम से की गई पेंटिंग्स न केवल अद्भुत सौंदर्य का प्रतीक हैं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत मानी जाती हैं।

कैसे पहुंचें टोंक की शाही जामा मस्जिद
अगर आप भी इस रूहानी अनुभव और स्थापत्य कला को महसूस करना चाहते हैं, तो टोंक की यात्रा करना एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है।
रेल मार्ग: टोंक रेलवे स्टेशन करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जयपुर है, जो यहां से लगभग 95 किलोमीटर दूर है।
सड़क मार्ग: बस और टैक्सी सेवाओं से जयपुर, कोटा और अजमेर से सीधा टोंक पहुंचा जा सकता है।

निष्कर्ष
टोंक की शाही जामा मस्जिद न सिर्फ राजस्थान बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक और स्थापत्य धरोहरों में एक अनमोल रत्न है। इसकी तुलना दिल्ली की जामा मस्जिद से यूं ही नहीं की जाती — इसके पीछे एक इतिहास है, एक कला है और सबसे बड़ी बात, एक आध्यात्मिक अनुभूति है। यहां आकर हर किसी को शांति, सौंदर्य और संस्कृति का संगम देखने को मिलता है।तो अगली बार जब भी आप जयपुर या कोटा जाएं, टोंक जरूर घूमिए — खासतौर पर शाही जामा मस्जिद, जहां हर दीवार और हर मीनार में बसी है एक दास्तान।

Loving Newspoint? Download the app now