भारतीय राजनीति में परिवारवाद और भाई-भतीजावाद एक पुराना विमर्श रहा है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे हिंदी भाषी राज्यों से लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक तक, राजनीतिक विरासत अक्सर एक ही परिवार में हस्तांतरित होती रही है। पिता द्वारा पुत्र को सत्ता सौंपने के कई उदाहरण हैं, लेकिन हाल के कुछ घटनाक्रमों ने इस चलन को एक नया मोड़ दिया है। अब ऐसे भी मामले सामने आ रहे हैं, जहाँ एक पिता ने अपनी ही बनाई पार्टी से अपने पुत्र को बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
अंबुमणि पीएमके से बाहर, पिता ने वापस ली कमानतमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी पट्टाली मक्कल कच्ची (पीएमके) के संस्थापक एस. रामदास ने अपने बेटे और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष अंबुमणि रामदास को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। एस. रामदास ने अंबुमणि पर पार्टी को बर्बाद करने और मनमाने ढंग से काम करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि अंबुमणि कभी भी उनके बिना आगे नहीं बढ़ सकते थे और वे एक राजनेता बनने के लायक नहीं हैं।
इस पिता-पुत्र के बीच विवाद तब शुरू हुआ जब अंबुमणि ने स्वतंत्र रूप से पार्टी के कार्यक्रमों की अगुवाई करनी शुरू कर दी। उन्होंने वन्नियार समुदाय के लिए आंतरिक आरक्षण की मांग को लेकर एक आंदोलन की घोषणा की, जिसमें उनके पिता ने हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था। जुलाई में, दोनों ने अलग-अलग पार्टी गवर्निंग बॉडी की बैठकें भी बुलाई थीं। इस विवाद के बीच अंबुमणि ने कहा था कि पीएमके सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि एक बड़ा आंदोलन है, और यह किसी व्यक्ति विशेष का नहीं है। अंबुमणि रामदास 2004 से 2009 तक मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के रूप में कार्य कर चुके हैं।
केसीआर ने अपनी बेटी के. कविता को किया निलंबितइसी तरह का एक और मामला तेलंगाना में सामने आया, जब भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने अपनी बेटी के. कविता को पार्टी से निलंबित कर दिया। यह कार्रवाई तब हुई जब कविता ने सार्वजनिक रूप से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की आलोचना की। उन्होंने अपने पिता को 'राक्षसों से घिरा भगवान' बताया और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं हरिश राव और संतोष राव पर उनकी छवि को बर्बाद करने की साजिश रचने का आरोप लगाया। बीआरएस सूत्रों के अनुसार, दिल्ली शराब घोटाले में गिरफ्तारी के बाद से ही केसीआर ने कविता से दूरी बना ली थी।
कविता की यह कहानी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के प्रमुख जगन मोहन रेड्डी की बहन वाई.एस. शर्मिला से मिलती-जुलती है। शर्मिला ने भी संपत्ति विवाद के बाद अपने भाई के खिलाफ बगावत कर दी थी और अपनी पार्टी बनाई थी, जिसका बाद में उन्होंने कांग्रेस में विलय कर दिया। कविता ने अभी तक अपने भविष्य के कदमों को लेकर कोई घोषणा नहीं की है।
लालू यादव ने तेज प्रताप को दिखाया बाहर का रास्ताबिहार की राजनीति में भी ऐसा ही एक उदाहरण देखने को मिला, जब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। यह कार्रवाई तब हुई जब तेज प्रताप के सोशल मीडिया अकाउंट से उनके निजी जीवन को लेकर एक आपत्तिजनक पोस्ट हुआ था, जिसमें एक रिश्ते का जिक्र था। लालू यादव ने कहा कि तेज प्रताप का गैर-जिम्मेदाराना आचरण और नैतिक ईमानदारी की कमी पार्टी के सिद्धांतों को कमजोर करती है। हालांकि तेज प्रताप ने अपने अकाउंट के हैक होने की बात कही थी, लेकिन उनकी सफाई काम नहीं आई।
मुलायम सिंह ने भी अखिलेश को किया था निष्कासितउत्तर प्रदेश की राजनीति में भी करीब नौ साल पहले ऐसा ही एक नाटकीय घटनाक्रम हुआ था। 30 दिसंबर 2016 को, समाजवादी पार्टी के तत्कालीन प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे और तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित करने की घोषणा की थी। मुलायम ने कहा था कि पार्टी को बचाने के लिए यह जरूरी है। हालांकि, इस फैसले का उलटा असर हुआ। अगले ही दिन अखिलेश यादव ने सपा विधायक दल की बैठक बुलाई, जिसमें 200 से अधिक विधायक उनके समर्थन में आ गए। इसके बाद, अखिलेश ने सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर मुलायम को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया और खुद यह जिम्मेदारी संभाल ली। भले ही मामला कोर्ट तक गया, लेकिन पार्टी का निशान और कमान अखिलेश के पास ही रही। ये सभी उदाहरण यह दर्शाते हैं कि भारतीय राजनीति में परिवारवाद की जड़ें गहरी होते हुए भी, सत्ता और वर्चस्व की लड़ाई में रिश्तों को भी किनारे कर दिया जाता है।
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