काठमांडू: नेपाल में हाल के तख्तापलट के बाद राजनीतिक माहौल एक बार फिर गरमा रहा है। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि इस हिमालयी देश में एक बार फिर तनाव भड़क सकता है। अभी चंद दिनों पहले ही नेपाल में केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन देखने को मिला था। यह विरोध प्रदर्शन हिंसा में बदल गया और प्रदर्शनकारियों ने नेपाली संसद, सुप्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति आवास समेत कई राजनीतिक दलों के कार्यालयों को फूंक दिया था। इतना ही नहीं, देश के कई वरिष्ठ नेताओं पर हमले भी किए गए। बाद में नेपाली सेना की सख्ती के बाद शांति लौटी और सुशीला कार्की के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार ने जिम्मेदारी संभाली है।
माय रिपब्लिका की रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल में प्रमुख राजनीतिक दल अब भी देश की राजनीति में छाए हुए हैं। वे अपनी सीटें और पद को छोड़ने को तैयार नहीं हैं। हालांकि, जेन-जी प्रदर्शनकारियों की सबसे बड़ी मांग देश की राजनीतिक बागडोर नए हाथों में सौंपने की थी। नेपाली कांग्रेस, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (सेंटर) ने देश में लंबे समय तक राज किया है। ऐसे में वह देश की राजनीति पर अपनी पकड़ को कमजोर करने के लिए तैयार नहीं हैं। इन पार्टियों को अब भी उम्मीद है कि अगले साल होने वाले चुनाव में एक बार फिर वह सत्ता में लौटेंगे।
नेपाली कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे देउबा
रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी नेपाली कांग्रेस (एनसी) में सत्ता नए हाथों में सौंपने की रफ्तार सबसे धीमी है। पार्टी के महासचिव गगन थापा और विश्व प्रकाश शर्मा अपनी कमजोरियों का सामना करने और जनता से फिर से जुड़ने को लेकर मुखर रहे हैं, लेकिन पार्टी के लंबे समय से अध्यक्ष रहे शेर बहादुर देउबा चुप हैं। देउबा पर विरोध प्रदर्शनों के दौरान हमला हुआ था। उनकी पत्नी और नेपाल की विदेश मंत्री आरजू राणा देउबा से भी मारपीट की गई थी। दोनों नेता अस्पताल में भर्ती हैं और इस्तीफा देने को तैयार नहीं हैं। हालांकि, नेपाली कांग्रेस में देउबा के उत्तराधिकारी बनने की होड़ जारी है। कई नेता पहले से ही खुद की दावेदारी पेश कर रहे हैं।
अंडरग्राउंड ओली से कोई संपर्क ही नहीं
केपी शर्मा ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल मुख्यालय भी इससे अलग नहीं है। ओली लोगों की पहुंच से दूर किसी गुप्त स्थान पर छिपे हुए हैं। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का भी कहना है कि उनका ओली से कोई संपर्क नहीं है। महासचिव शंकर पोखरेल ने कहा है कि नेतृत्व के सवालों का समाधान "उचित समय पर" किया जाएगा। प्रदीप ग्यावली और योगेश भट्टाराई जैसे अन्य नेता उत्तराधिकार की बजाय आंतरिक सुधारों पर जोर दे रहे हैं, हालांकि ओली के जानने वालों का कहना है कि वह पद से इस्तीफा किसी भी कीमत पर नहीं देंगे, क्योंकि सीपीएन-यूएमएल को उन्होंने ही खड़ा किया है।
प्रचंड भी इस्तीफे को तैयार नहीं
पुष्प कमल दहल प्रचंड की पार्टी सीपीएन (माओवादी सेंटर) भी इसी रास्ते पर चल रही है। हालांकि प्रचंड की पार्टी में बगावती सुर बाकी सबसे तेज हैं। सीपीएन (माओवादी सेंटर) के उप महासचिव जनार्दन शर्मा ने प्रचंड के इस्तीफे की खुलेआम मांग की है। कई दूसरे नेताओं ने भी पार्टी में सुधार की वकालत की है। हालांकि, प्रचंड पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए राजी नहीं हैं और आगामी चुनावों का इंतजार कर रहे हैं। प्रचंड को उम्मीद है कि अगले चुनाव में उनकी पार्टी सबसे ज्यादा सीटें जीतेगी और सरकार का निर्माण करेगी।
माय रिपब्लिका की रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल में प्रमुख राजनीतिक दल अब भी देश की राजनीति में छाए हुए हैं। वे अपनी सीटें और पद को छोड़ने को तैयार नहीं हैं। हालांकि, जेन-जी प्रदर्शनकारियों की सबसे बड़ी मांग देश की राजनीतिक बागडोर नए हाथों में सौंपने की थी। नेपाली कांग्रेस, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (सेंटर) ने देश में लंबे समय तक राज किया है। ऐसे में वह देश की राजनीति पर अपनी पकड़ को कमजोर करने के लिए तैयार नहीं हैं। इन पार्टियों को अब भी उम्मीद है कि अगले साल होने वाले चुनाव में एक बार फिर वह सत्ता में लौटेंगे।
नेपाली कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे देउबा
रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी नेपाली कांग्रेस (एनसी) में सत्ता नए हाथों में सौंपने की रफ्तार सबसे धीमी है। पार्टी के महासचिव गगन थापा और विश्व प्रकाश शर्मा अपनी कमजोरियों का सामना करने और जनता से फिर से जुड़ने को लेकर मुखर रहे हैं, लेकिन पार्टी के लंबे समय से अध्यक्ष रहे शेर बहादुर देउबा चुप हैं। देउबा पर विरोध प्रदर्शनों के दौरान हमला हुआ था। उनकी पत्नी और नेपाल की विदेश मंत्री आरजू राणा देउबा से भी मारपीट की गई थी। दोनों नेता अस्पताल में भर्ती हैं और इस्तीफा देने को तैयार नहीं हैं। हालांकि, नेपाली कांग्रेस में देउबा के उत्तराधिकारी बनने की होड़ जारी है। कई नेता पहले से ही खुद की दावेदारी पेश कर रहे हैं।
अंडरग्राउंड ओली से कोई संपर्क ही नहीं
केपी शर्मा ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल मुख्यालय भी इससे अलग नहीं है। ओली लोगों की पहुंच से दूर किसी गुप्त स्थान पर छिपे हुए हैं। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का भी कहना है कि उनका ओली से कोई संपर्क नहीं है। महासचिव शंकर पोखरेल ने कहा है कि नेतृत्व के सवालों का समाधान "उचित समय पर" किया जाएगा। प्रदीप ग्यावली और योगेश भट्टाराई जैसे अन्य नेता उत्तराधिकार की बजाय आंतरिक सुधारों पर जोर दे रहे हैं, हालांकि ओली के जानने वालों का कहना है कि वह पद से इस्तीफा किसी भी कीमत पर नहीं देंगे, क्योंकि सीपीएन-यूएमएल को उन्होंने ही खड़ा किया है।
प्रचंड भी इस्तीफे को तैयार नहीं
पुष्प कमल दहल प्रचंड की पार्टी सीपीएन (माओवादी सेंटर) भी इसी रास्ते पर चल रही है। हालांकि प्रचंड की पार्टी में बगावती सुर बाकी सबसे तेज हैं। सीपीएन (माओवादी सेंटर) के उप महासचिव जनार्दन शर्मा ने प्रचंड के इस्तीफे की खुलेआम मांग की है। कई दूसरे नेताओं ने भी पार्टी में सुधार की वकालत की है। हालांकि, प्रचंड पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए राजी नहीं हैं और आगामी चुनावों का इंतजार कर रहे हैं। प्रचंड को उम्मीद है कि अगले चुनाव में उनकी पार्टी सबसे ज्यादा सीटें जीतेगी और सरकार का निर्माण करेगी।
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