इस्लामाबाद: अफगान तालिबान के साथ तनातनी में अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ नहीं देने का फैसला लिया है। सैन्य संघर्ष के दौरान अमेरिका ने दूरी बनाई और इसके बाद भी इस्लामाबाद का समर्थन नहीं किया है। लंदन में रहने वाले पाकिस्तान के पूर्व सैन्य अधिकारी आदिल राजा ने यह दावा किया है। आदिल का कहना है कि असीम मुनीर की हालिया महीनों में डोनाल्ड ट्रंप से जो मुलाकातें हुईं, उनमें अफगानिस्तान अहम मुद्दा था। मुनीर ने कई तरह के लालच देकर ट्रंप का समर्थन पाने की कोशिश की लेकिन वह इसमें पूरी तरह नाकामयाब रहे।
आदिल राजा का कहना है कि इस साल जून में ट्रंप के साथ लंच के दौरान और उसके बाद भी मुनीर ने अमेरिका को कई ऑफर दिए। मुनीर ने ट्रंप से कहा कि अमेरिका अगर तिलिबान के खिलाफ पाकिस्तान की मदद करेगा तो हम आपको बगराम एयरबेस पर नियंत्रण दिलवाने में मदद करेंगे। ट्रंप को लालच दिया गया कि काबुल के पास स्थत इस बेस से अमेरिकी सैन्य अधिकारी चीन की निगरानी कर सकते हैं।
ट्रंप के भरोसे शुरू की लड़ाईआदिल आगे कहते हैं, 'असीम मुनीर ने अमेरिका की मदद के भरोसे ही इस महीने अफगानिस्तान में हवाई हमले करते हुए तालिबान से लड़ाई शुरू की। मुनीर को तब झटका लगा, जब ट्रंप प्रशासन ने उनकी कोई मदद नहीं की। अमेरिका से डॉलर नहीं आए तो पाकिस्तान को कदम पीछे खींचने पड़े और अरब देशों की मध्यस्थता में सीजफायर समझौता करने को मजबूर होना पड़ा।'
आदिल ने अपने सूत्रों के हवाले से कहा है कि अमेरिका ने तालिबान को भरोसा दिया है कि वह पाकिस्तान का साथ नहीं देगा। आदिल का कहना है कि अमेरिका के पाकिस्तान को मदद ना करने की वजह इतिहास है। अमेरिका ने 20 साल तक अफगानिस्तान में रहने के दौरान पाकिस्तान से मिले धोखों को याद किया और इस्लामाबाद का साथ नहीं देने का फैसला लिया।
पाकिस्तान से ट्रंप को डरराजा का दावा है कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने अफगानिस्तान नहीं बल्कि पाकिस्तान को खतरा माना है। अमेरिका ने माना है कि पाकिस्तान में कई आतंकी गुट पनाह और समर्थन पा रहे हैं लेकिन काबुल से वॉशिंगटन को कोई खतरा नहीं है। ऐसे में असीम मुनीर और शहबाज शरीफ की अमेरिका की यात्राएं और ट्रंम्प की चापलूसी व्यर्थ साबित हुई। इतना ही नहीं अमेरिका ने पाकिस्तानी सेना के अफगानिस्तान के हवाई क्षेत्र के उल्लंघन पर भी आपत्ति जताई है।
आदिल राजा का कहना है कि इस साल जून में ट्रंप के साथ लंच के दौरान और उसके बाद भी मुनीर ने अमेरिका को कई ऑफर दिए। मुनीर ने ट्रंप से कहा कि अमेरिका अगर तिलिबान के खिलाफ पाकिस्तान की मदद करेगा तो हम आपको बगराम एयरबेस पर नियंत्रण दिलवाने में मदद करेंगे। ट्रंप को लालच दिया गया कि काबुल के पास स्थत इस बेस से अमेरिकी सैन्य अधिकारी चीन की निगरानी कर सकते हैं।
ट्रंप के भरोसे शुरू की लड़ाईआदिल आगे कहते हैं, 'असीम मुनीर ने अमेरिका की मदद के भरोसे ही इस महीने अफगानिस्तान में हवाई हमले करते हुए तालिबान से लड़ाई शुरू की। मुनीर को तब झटका लगा, जब ट्रंप प्रशासन ने उनकी कोई मदद नहीं की। अमेरिका से डॉलर नहीं आए तो पाकिस्तान को कदम पीछे खींचने पड़े और अरब देशों की मध्यस्थता में सीजफायर समझौता करने को मजबूर होना पड़ा।'
आदिल ने अपने सूत्रों के हवाले से कहा है कि अमेरिका ने तालिबान को भरोसा दिया है कि वह पाकिस्तान का साथ नहीं देगा। आदिल का कहना है कि अमेरिका के पाकिस्तान को मदद ना करने की वजह इतिहास है। अमेरिका ने 20 साल तक अफगानिस्तान में रहने के दौरान पाकिस्तान से मिले धोखों को याद किया और इस्लामाबाद का साथ नहीं देने का फैसला लिया।
पाकिस्तान से ट्रंप को डरराजा का दावा है कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने अफगानिस्तान नहीं बल्कि पाकिस्तान को खतरा माना है। अमेरिका ने माना है कि पाकिस्तान में कई आतंकी गुट पनाह और समर्थन पा रहे हैं लेकिन काबुल से वॉशिंगटन को कोई खतरा नहीं है। ऐसे में असीम मुनीर और शहबाज शरीफ की अमेरिका की यात्राएं और ट्रंम्प की चापलूसी व्यर्थ साबित हुई। इतना ही नहीं अमेरिका ने पाकिस्तानी सेना के अफगानिस्तान के हवाई क्षेत्र के उल्लंघन पर भी आपत्ति जताई है।
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