वॉशिंगटन: अल कायदा आतंकवादी से सीरिया के राष्ट्रपति बने अहमद अल-शरा व्हाइट हाउस के मेहमान बनने वाले हैं। लोकतंत्र के चैंपियन और आतंकवाद से कभी समझौता न करने वाले देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अहमद अल-शरा की अगवानी करने वाले हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सीरिया में ऐसा क्या है, जिसने अमेरिका को एक पूर्व अल कायदा आतंकवादी को सरकारी मेहमान बनाने के लिए मजबूर कर दिया है। सीरिया ने पुष्टि की है कि अहमद अल-शरा नवंबर की शुरुआत में व्हाइट हाउस जाएंगे और सीरिया के पुनर्निर्माण पर चर्चा करेंगे।
सीरियाई विदेश मंत्री असद अल-शैबानी ने पुष्टि की है कि राष्ट्रपति अहमद अल-शराआ नवंबर की शुरुआत में व्हाइट हाउस जाएंगे। अमेरिकी विशेष दूत टॉम बैरक ने पिछले दिन कहा था कि शरा वाशिंगटन जाएंगे, जबकि व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने बाद में कहा कि यह यात्रा 10 नवंबर के आसपास होगी। शैबानी ने कहा, "प्रतिबंधों को हटाने और संयुक्त राज्य अमेरिका और सीरिया के बीच एक नए अध्याय की शुरुआत से लेकर कई मुद्दों पर बातचीत होगी। हम दोनों देशों के बीच एक बहुत मजबूत साझेदारी स्थापित करना चाहते हैं।"
सीरिया के दुश्मनों से दुश्मनी कर रहे अहमद अल-शरा
अमेरिकी विदेश विभाग के अनुसार, इससे पहले किसी भी सीरियाई राष्ट्रपति ने वाशिंगटन की आधिकारिक यात्रा नहीं की है। शरा ने सितंबर में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया था। पिछले दिसंबर में बशर अल-असद से सत्ता हथियाने के बाद से, शरा ने कई विदेश यात्राएं की हैं। उनकी अंतरिम सरकार विश्व शक्तियों के साथ सीरिया के संबंधों को फिर से स्थापित करना चाहती है, जिन्होंने असद के शासन के दौरान दमिश्क को छोड़ दिया था।
अहमद अल-शरा का अल कायदा से कनेक्शन जानें
अहमद अल-शरा को अबू मोहम्मद अल-जुलानी के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में वह सीरिया की अंतरिम सरकार में राष्ट्रपति हैं। वह एक खूंखार इस्लामिक मिलिशिया तहरीर अल-शाम के प्रमुख भी हैं। उनका नाम अल-कायदा से संबद्ध सीरियाई अल-नुसरा फ्रंट के संस्थापक और अमीर के रूप में प्रमुखता से उभरा। उनके नेतृत्व में अल-नुसरा फ्रंट ने सीरिया के उत्तर-पश्चिमी इदलिब प्रांत को अपना गढ़ बनाया। उनके नेतृत्व में ही 2016 में अल-नुसरा ने अल-कायदा से संबंध तोड़ लिए और अगले वर्ष इसे अन्य संगठनों के साथ मिलाकर तहरीर अल-शाम बना लिया। इस सीरियाई विद्रोही समूह ने 2024 में राष्ट्रपति बशर-अल असद को हटाकर सीरिया पर कब्जा कर लिया था।
सीरिया से अमेरिका को क्या लाभ
सीरिया में अमेरिका दशकों से दखलअंदाजी कर रहा है। जब बशर अल-असद सत्ता में थे, तब भी अमेरिका ने अपनी सैन्य टुकड़ी को सीरिया में तैनात कर दिया था। उस समय असद को अमेरिका का घोर विरोधी माना जाता था, लेकिन जमीन पर मौजूद हालात के कारण तत्कालीन सीरियाई सेना अपनी संप्रभुता की सुरक्षा करने में सक्षम नहीं थी। अमेरिका ने इसका फायदा उठाया और असद के खिलाफ विद्रोही समूहों को हथियार, तकनीक और दूसरी सहायता उपलब्ध कराई। 2011 में गृहयुद्ध शुरू होने के तुरंत बाद ओबामा प्रशासन ने सीरिया पर प्रतिबंध लगा दिए और टिम्बर साइकैमोर को गुप्त रूप से अधिकृत करके फ्री सीरियन आर्मी के विद्रोही गुट का समर्थन किया। इसके तहत केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) ने विद्रोहियों को हथियार और प्रशिक्षण दिया।
सीरिया में क्यों घुसी अमेरिकी सेना
22 सितंबर 2014 को अमेरिका ने सीरियाई गृहयुद्ध के नाम पर इस देश में अपनी सेना को तैनात किया। इसका घोषित उद्देश्य इस्लामिक स्टेट आतंकवादी संगठन से लड़ना और उसके विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय युद्ध का समर्थन करना था , जिसका कोड नाम ऑपरेशन इनहेरेंट रिज़ॉल्व था, लेकिन असली मकसद रूस समर्थक बशर अल-असद को सत्ता से हटाना था। अमेरिका ने इसके लिए वर्तमान में सीरियाई फ्री आर्मी के विपक्षी गुट और वाईपीजी के नेतृत्व वाली सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेस का समर्थन करना शुरू किया। हालांकि, तुर्की की इस संगठन से पुरानी दुश्मनी होने के कारण अमेरिका को सीरिया में कुछ खास लाभ प्राप्त नहीं हुआ।
सीरियाई विदेश मंत्री असद अल-शैबानी ने पुष्टि की है कि राष्ट्रपति अहमद अल-शराआ नवंबर की शुरुआत में व्हाइट हाउस जाएंगे। अमेरिकी विशेष दूत टॉम बैरक ने पिछले दिन कहा था कि शरा वाशिंगटन जाएंगे, जबकि व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने बाद में कहा कि यह यात्रा 10 नवंबर के आसपास होगी। शैबानी ने कहा, "प्रतिबंधों को हटाने और संयुक्त राज्य अमेरिका और सीरिया के बीच एक नए अध्याय की शुरुआत से लेकर कई मुद्दों पर बातचीत होगी। हम दोनों देशों के बीच एक बहुत मजबूत साझेदारी स्थापित करना चाहते हैं।"
सीरिया के दुश्मनों से दुश्मनी कर रहे अहमद अल-शरा
अमेरिकी विदेश विभाग के अनुसार, इससे पहले किसी भी सीरियाई राष्ट्रपति ने वाशिंगटन की आधिकारिक यात्रा नहीं की है। शरा ने सितंबर में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया था। पिछले दिसंबर में बशर अल-असद से सत्ता हथियाने के बाद से, शरा ने कई विदेश यात्राएं की हैं। उनकी अंतरिम सरकार विश्व शक्तियों के साथ सीरिया के संबंधों को फिर से स्थापित करना चाहती है, जिन्होंने असद के शासन के दौरान दमिश्क को छोड़ दिया था।
अहमद अल-शरा का अल कायदा से कनेक्शन जानें
अहमद अल-शरा को अबू मोहम्मद अल-जुलानी के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में वह सीरिया की अंतरिम सरकार में राष्ट्रपति हैं। वह एक खूंखार इस्लामिक मिलिशिया तहरीर अल-शाम के प्रमुख भी हैं। उनका नाम अल-कायदा से संबद्ध सीरियाई अल-नुसरा फ्रंट के संस्थापक और अमीर के रूप में प्रमुखता से उभरा। उनके नेतृत्व में अल-नुसरा फ्रंट ने सीरिया के उत्तर-पश्चिमी इदलिब प्रांत को अपना गढ़ बनाया। उनके नेतृत्व में ही 2016 में अल-नुसरा ने अल-कायदा से संबंध तोड़ लिए और अगले वर्ष इसे अन्य संगठनों के साथ मिलाकर तहरीर अल-शाम बना लिया। इस सीरियाई विद्रोही समूह ने 2024 में राष्ट्रपति बशर-अल असद को हटाकर सीरिया पर कब्जा कर लिया था।
सीरिया से अमेरिका को क्या लाभ
सीरिया में अमेरिका दशकों से दखलअंदाजी कर रहा है। जब बशर अल-असद सत्ता में थे, तब भी अमेरिका ने अपनी सैन्य टुकड़ी को सीरिया में तैनात कर दिया था। उस समय असद को अमेरिका का घोर विरोधी माना जाता था, लेकिन जमीन पर मौजूद हालात के कारण तत्कालीन सीरियाई सेना अपनी संप्रभुता की सुरक्षा करने में सक्षम नहीं थी। अमेरिका ने इसका फायदा उठाया और असद के खिलाफ विद्रोही समूहों को हथियार, तकनीक और दूसरी सहायता उपलब्ध कराई। 2011 में गृहयुद्ध शुरू होने के तुरंत बाद ओबामा प्रशासन ने सीरिया पर प्रतिबंध लगा दिए और टिम्बर साइकैमोर को गुप्त रूप से अधिकृत करके फ्री सीरियन आर्मी के विद्रोही गुट का समर्थन किया। इसके तहत केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) ने विद्रोहियों को हथियार और प्रशिक्षण दिया।
सीरिया में क्यों घुसी अमेरिकी सेना
22 सितंबर 2014 को अमेरिका ने सीरियाई गृहयुद्ध के नाम पर इस देश में अपनी सेना को तैनात किया। इसका घोषित उद्देश्य इस्लामिक स्टेट आतंकवादी संगठन से लड़ना और उसके विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय युद्ध का समर्थन करना था , जिसका कोड नाम ऑपरेशन इनहेरेंट रिज़ॉल्व था, लेकिन असली मकसद रूस समर्थक बशर अल-असद को सत्ता से हटाना था। अमेरिका ने इसके लिए वर्तमान में सीरियाई फ्री आर्मी के विपक्षी गुट और वाईपीजी के नेतृत्व वाली सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेस का समर्थन करना शुरू किया। हालांकि, तुर्की की इस संगठन से पुरानी दुश्मनी होने के कारण अमेरिका को सीरिया में कुछ खास लाभ प्राप्त नहीं हुआ।
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