जयपुर: असम में बहुविवाह अब कानून अपराध की श्रेणी में आने वाला है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने घोषणा की कि राज्य मंत्रिमंडल ने ‘असम बहुविवाह निषेध विधेयक 2025’ को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत बहुविवाह करने वालों को 7 साल तक की कठोर सजा हो सकती है। लेकिन यहां हम इसके इतर उस इलाके की बात कर रहे हैं जो आज भी एक से अधिक पत्नियां या दो-दो बीवी रखने का रिवाज बदस्तूर जारी है।
यहां 3 से 5 प्रतिशत पुरुषों के दो-दो पत्नियां
असम सरकार भले ही बहुविवाह को अब और बर्दाश्त नहीं करने वाली लेकिन इस इलाके में आज भी 3 से 5 फीसदी पुरुषों के दो-दो पत्नियां हैं। हम बात कर रहे हैं राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा से सटे इलाके की। यहां आज भी कई समाजों में एक पत्नी के रहते दूसरी महिला से शादी करने का रिवाज है।
मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काज़ी, यहां तो दूसरी भी राजी
स्थानीय सूत्रों के अनुसार सीमावर्ती अंचल के इस इलाके में बहुविवाह को लेकर कभी किसी तरह की कानूनी या सामाजिक परेशानी नहीं देखी गई। दरअसल, यहां मियां-बीवी के साथ दूसरी महिला भी सहमति से साथ रहती है। यही नहीं एक पुरुष के साथ दो-दो पत्नियों के इस रिवाज में महिलाओं के पीहर पक्ष की ओर से भी सहमति या रजामंदी होती है।
बहुविवाह का दंश सबसे ज्यादा महिलाएं झेल रहीं!
समाज में बहुविवाह प्रथा का खामियाजा अक्सर महिलाओं को सामाजिक तौर पर चुकाना पड़ता है। हालांकि आज भी ऐसा उन्हीं इलाकों में हो रहा है जहां बहुविवाह से पीड़ित महिलाएं खुलकर अपनी आवाज नहीं उठा पाती हैं। समाजशास्त्रियों का कहना है कि बहुविवाह जैसी प्रथा लैंगिक असमानता और महिलाओं की अधीनता को बढ़ावा देती है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह प्रथा खासतौर पर पितृसत्तात्मक समाजों में पुरुषों के प्रभुत्व को और मजबूत करती है। इसके कारण महिलाओं के बीच एकजुटता कमजोर पड़ती है, जिससे उनकी शिक्षा, अधिकारों और अवसरों तक पहुंच सीमित हो जाती है। ऐसे सामाजिक ढांचे में महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने की राह और मुश्किल हो जाती है।
बता दें कि असम के सीएम सरमा ने भी अपने यहां बहुविवाह के बताया कि सरकार बहुविवाह से पीड़ित महिलाओं के लिए एक विशेष कोष बनाएगी, जिससे उन्हें आर्थिक मदद मिल सके और जीवन यापन में कठिनाई न हो। यह कानून लागू होने के बाद दोषियों के खिलाफ बिना जमानत के मामला दर्ज किया जाएगा।
यहां 3 से 5 प्रतिशत पुरुषों के दो-दो पत्नियां
असम सरकार भले ही बहुविवाह को अब और बर्दाश्त नहीं करने वाली लेकिन इस इलाके में आज भी 3 से 5 फीसदी पुरुषों के दो-दो पत्नियां हैं। हम बात कर रहे हैं राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा से सटे इलाके की। यहां आज भी कई समाजों में एक पत्नी के रहते दूसरी महिला से शादी करने का रिवाज है।
मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काज़ी, यहां तो दूसरी भी राजी
स्थानीय सूत्रों के अनुसार सीमावर्ती अंचल के इस इलाके में बहुविवाह को लेकर कभी किसी तरह की कानूनी या सामाजिक परेशानी नहीं देखी गई। दरअसल, यहां मियां-बीवी के साथ दूसरी महिला भी सहमति से साथ रहती है। यही नहीं एक पुरुष के साथ दो-दो पत्नियों के इस रिवाज में महिलाओं के पीहर पक्ष की ओर से भी सहमति या रजामंदी होती है।
बहुविवाह का दंश सबसे ज्यादा महिलाएं झेल रहीं!
समाज में बहुविवाह प्रथा का खामियाजा अक्सर महिलाओं को सामाजिक तौर पर चुकाना पड़ता है। हालांकि आज भी ऐसा उन्हीं इलाकों में हो रहा है जहां बहुविवाह से पीड़ित महिलाएं खुलकर अपनी आवाज नहीं उठा पाती हैं। समाजशास्त्रियों का कहना है कि बहुविवाह जैसी प्रथा लैंगिक असमानता और महिलाओं की अधीनता को बढ़ावा देती है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह प्रथा खासतौर पर पितृसत्तात्मक समाजों में पुरुषों के प्रभुत्व को और मजबूत करती है। इसके कारण महिलाओं के बीच एकजुटता कमजोर पड़ती है, जिससे उनकी शिक्षा, अधिकारों और अवसरों तक पहुंच सीमित हो जाती है। ऐसे सामाजिक ढांचे में महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने की राह और मुश्किल हो जाती है।
बता दें कि असम के सीएम सरमा ने भी अपने यहां बहुविवाह के बताया कि सरकार बहुविवाह से पीड़ित महिलाओं के लिए एक विशेष कोष बनाएगी, जिससे उन्हें आर्थिक मदद मिल सके और जीवन यापन में कठिनाई न हो। यह कानून लागू होने के बाद दोषियों के खिलाफ बिना जमानत के मामला दर्ज किया जाएगा।
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