नई दिल्ली: सोने की कीमतों में इस साल जोरदार तेजी आई है। इंटरनेशनल मार्केट में यह 4,000 डॉलर प्रति औंस से ऊपर चला गया। हालांकि, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अश्वथ दामोदरन ने इस पर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि निवेशकों को इसके पीछे के सच को गहराई से समझना चाहिए। दामोदरन के अनुसार, सोना 'स्पष्ट रूप से महंगा' है। उन्होंने अपने एक ब्लॉग पोस्ट में कहा कि 2025 में सोने के दामों में 57% की बढ़ोतरी हुई है। पिछले एक दशक में सोना 1,060 डॉलर से बढ़कर 4,000 डॉलर के पार चला गया है। लेकिन, यह चमक उसके असली गुणों से मेल नहीं खाती।
प्रोफेसर दामोदरन ने बताया कि सोने को अक्सर महंगाई और आर्थिक संकट से एक सुरक्षा कवच माना जाता है। लेकिन, इतिहास गवाह है कि यह रिश्ता उतना सीधा नहीं है। उन्होंने समझाया कि शेयर या बॉन्ड की तरह सोना कोई कमाई नहीं करता। इसलिए, यह एक वित्तीय संपत्ति से ज्यादा एक कलेक्टिबल यानी जुटाने वाली वस्तु की तरह है। इसका मूल्य काफी हद तक लोगों की सोच और बाजार के मिजाज पर निर्भर करता है।
मूल्य से महंगा बिक रहा है सोना
अपनी बात को पुख्ता करने के लिए दामोदरन ने दो ऐतिहासिक अनुपातों का विश्लेषण किया: गोल्ड-टू-सीपीआई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) और गोल्ड-टू-सिल्वर। अक्टूबर 2025 में गोल्ड-टू-सीपीआई रेशियो 17.81 पर पहुंच गया। यह ऐतिहासिक औसत 3 से लगभग छह गुना ज्यादा है। इसी तरह गोल्ड-टू-सिल्वर रेशियो 84.73 था जो इसके ऐतिहासिक औसत 57.09 से काफी ऊपर है। ये दोनों आंकड़े बताते हैं कि सोना शायद अपने ऐतिहासिक मूल्य से बहुत ज्यादा महंगा बिक रहा है।
हालांकि, दामोदरन यह भी मानते हैं कि अगर ब्याज दरें लगातार कम बनी रहती हैं और महंगाई भी कम रहती है तो इन औसत अनुपातों में बदलाव आ सकता है। इससे सोने के वैल्यूएशन में भी कुछ हद तक बदलाव होने के आसार हैं। लेकिन, यह बदलाव भी एक सीमा तक ही होगा।
कीमतों में असली कारणों से नहीं
प्रोफेसर दामोदरन के अनुसार, सोने की असली कहानी उसके बीमा के तौर पर काम करने में है। उन्होंने लिखा, 'जो निवेशक अपने पोर्टफोलियो में सोने को इसलिए शामिल करते हैं क्योंकि यह सुरक्षा देता है, उन्हें यह समझना चाहिए कि यह किसी बड़ी अनहोनी के लिए बीमा खरीदने जैसा है।' यह बात खासकर उन लोगों के लिए सच है जिनकी दौलत ज्यादातर वित्तीय संपत्तियों में लगी हुई है।
दामोदरन का मानना है कि हालिया कीमतों में उछाल शायद असली कारणों से नहीं, बल्कि डर की वजह से आया है। उन्होंने कहा, 'कुछ लोग निश्चित रूप से सही समय पर सही जगह पर होने की वजह से भाग्यशाली रहे होंगे। लेकिन, कुछ लोग बाजार के बदलते मिजाज को पहले ही भांप गए थे, खासकर 2025 में।'
उन्होंने यह भी कहा, 'अगर जेमी डिमोन और रे डेलियो सचमुच कहते हैं कि बाजार एक बुलबुला है तो क्या उनके लिए सोना रखना समझदारी नहीं होगी?' यह सवाल सोने की मांग और उसके पीछे की भावनाओं को समझने में मदद करता है। यानी जब बड़े निवेशक भी बाजार में अनिश्चितता देखते हैं तो वे सोने की ओर रुख कर सकते हैं, भले ही उसके दाम बहुत ज्यादा हों। यह सोने को एक तरह का 'डर का प्रीमियम' दिलाता है।
प्रोफेसर दामोदरन ने बताया कि सोने को अक्सर महंगाई और आर्थिक संकट से एक सुरक्षा कवच माना जाता है। लेकिन, इतिहास गवाह है कि यह रिश्ता उतना सीधा नहीं है। उन्होंने समझाया कि शेयर या बॉन्ड की तरह सोना कोई कमाई नहीं करता। इसलिए, यह एक वित्तीय संपत्ति से ज्यादा एक कलेक्टिबल यानी जुटाने वाली वस्तु की तरह है। इसका मूल्य काफी हद तक लोगों की सोच और बाजार के मिजाज पर निर्भर करता है।
मूल्य से महंगा बिक रहा है सोना
अपनी बात को पुख्ता करने के लिए दामोदरन ने दो ऐतिहासिक अनुपातों का विश्लेषण किया: गोल्ड-टू-सीपीआई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) और गोल्ड-टू-सिल्वर। अक्टूबर 2025 में गोल्ड-टू-सीपीआई रेशियो 17.81 पर पहुंच गया। यह ऐतिहासिक औसत 3 से लगभग छह गुना ज्यादा है। इसी तरह गोल्ड-टू-सिल्वर रेशियो 84.73 था जो इसके ऐतिहासिक औसत 57.09 से काफी ऊपर है। ये दोनों आंकड़े बताते हैं कि सोना शायद अपने ऐतिहासिक मूल्य से बहुत ज्यादा महंगा बिक रहा है।
हालांकि, दामोदरन यह भी मानते हैं कि अगर ब्याज दरें लगातार कम बनी रहती हैं और महंगाई भी कम रहती है तो इन औसत अनुपातों में बदलाव आ सकता है। इससे सोने के वैल्यूएशन में भी कुछ हद तक बदलाव होने के आसार हैं। लेकिन, यह बदलाव भी एक सीमा तक ही होगा।
कीमतों में असली कारणों से नहीं
प्रोफेसर दामोदरन के अनुसार, सोने की असली कहानी उसके बीमा के तौर पर काम करने में है। उन्होंने लिखा, 'जो निवेशक अपने पोर्टफोलियो में सोने को इसलिए शामिल करते हैं क्योंकि यह सुरक्षा देता है, उन्हें यह समझना चाहिए कि यह किसी बड़ी अनहोनी के लिए बीमा खरीदने जैसा है।' यह बात खासकर उन लोगों के लिए सच है जिनकी दौलत ज्यादातर वित्तीय संपत्तियों में लगी हुई है।
दामोदरन का मानना है कि हालिया कीमतों में उछाल शायद असली कारणों से नहीं, बल्कि डर की वजह से आया है। उन्होंने कहा, 'कुछ लोग निश्चित रूप से सही समय पर सही जगह पर होने की वजह से भाग्यशाली रहे होंगे। लेकिन, कुछ लोग बाजार के बदलते मिजाज को पहले ही भांप गए थे, खासकर 2025 में।'
उन्होंने यह भी कहा, 'अगर जेमी डिमोन और रे डेलियो सचमुच कहते हैं कि बाजार एक बुलबुला है तो क्या उनके लिए सोना रखना समझदारी नहीं होगी?' यह सवाल सोने की मांग और उसके पीछे की भावनाओं को समझने में मदद करता है। यानी जब बड़े निवेशक भी बाजार में अनिश्चितता देखते हैं तो वे सोने की ओर रुख कर सकते हैं, भले ही उसके दाम बहुत ज्यादा हों। यह सोने को एक तरह का 'डर का प्रीमियम' दिलाता है।
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