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Success Story: कभी इंफोसिस में 9000 रुपये में करते थे नौकरी, आज Canva को टक्कर दे रही इनकी कंपनी, 10वीं पास ने कैसे पाया यह मुकाम?

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नई दिल्ली: महाराष्ट्र के एक सूखे इलाके के गांव से निकलकर दादाराव भगत ने अपनी मेहनत और हुनर से एक ऐसी कंपनी बनाई है, जिसकी तुलना आज दुनिया की बड़ी डिजाइनिंग प्लेटफॉर्म कैनवा (Canva) से हो रही है। कभी इंफोसिस (Infosys) में सिर्फ 9,000 रुपये महीने की नौकरी करने वाले दादाराव अब 'Design Template' नाम के प्लेटफॉर्म के फाउंडर हैं। उनकी यह कहानी बताती है कि कैसे लगन और काबिलियत किसी भी इंसान की जिंदगी बदल सकती है।



दादाराव भगत का जन्म महाराष्ट्र के बीड़ जिले में हुआ था। यह इलाका अक्सर सूखे की मार झेलता है, जिससे खेती-बाड़ी करना बहुत मुश्किल हो जाता है। उनके परिवार में पढ़ाई-लिखाई को ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती थी। दादाराव ने सिर्फ 10वीं तक पढ़ाई की और फिर फैक्ट्री की नौकरियों के लिए आईटीआई का कोर्स किया।



4000 रुपये से की शुरुआतबेहतर मौके की तलाश में दादाराव पुणे आ गए। वहां उन्हें पहली नौकरी मिली, जिसमें उन्हें महीने के 4,000 रुपये मिलते थे। इसके बाद उन्होंने इंफोसिस में ऑफिस बॉय की नौकरी के लिए अप्लाई किया। वहां उन्हें 9,000 रुपये महीने मिलने लगे।



इंफोसिस में ऑफिस बॉय की नौकरी के दौरान दादाराव का काम दफ्तर की सफाई करना, सामान लाना-ले जाना और कंपनी के गेस्ट हाउस में छोटे-मोटे काम करना था। जब वे कर्मचारियों को कंप्यूटर पर काम करते देखते थे, तो उन्हें समझ आता था कि शारीरिक मेहनत और हुनर वाले काम में कितना फर्क है।



खुद शुरू किया हुनर तराशनादादाराव ने कर्मचारियों से पूछना शुरू किया कि ऐसी नौकरियां कैसे मिलती हैं। उन्हें बताया गया कि इन नौकरियों के लिए डिग्री चाहिए होती है। लेकिन कुछ लोगों ने यह भी कहा कि ग्राफिक डिजाइन और एनिमेशन जैसे क्रिएटिव फील्ड में डिग्री से ज्यादा हुनर को महत्व दिया जाता है।



यह बात सुनकर दादाराव को अपने स्कूल के दिन याद आए। तब वे अपने बोर्डिंग स्कूल के पास एक मंदिर के पेंटर को देखकर बहुत प्रभावित होते थे। उन्हें बचपन से ही ड्राइंग का शौक था, लेकिन उन्होंने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया था। नौकरी और पढ़ाई के साथ-साथ, दादाराव ने अपनी शिफ्ट खत्म होने के बाद ग्राफिक डिजाइन सीखना शुरू किया। एक साल के अंदर ही वे दफ्तरों की सफाई से निकलकर डिजाइनर बन गए। अब वे उन्हीं कंप्यूटरों पर काम कर रहे थे, जिन्हें वे पहले साफ करते थे।



कैसे बनाई अपनी कंपनी?अनुभव हासिल करने के बाद दादाराव ने फ्रीलांस डिजाइनर के तौर पर काम करना शुरू किया और फिर अपनी कंपनी बनाने का फैसला किया। शुरुआती साल बहुत मुश्किल थे। उनके पास पैसे कम थे और काम धीरे-धीरे बढ़ रहा था।



जब COVID-19 महामारी आई तो उन्होंने पुणे का अपना ऑफिस बंद कर दिया और अपने गांव लौट आए। हार मानने की बजाय, उन्होंने एक नया डिजाइन प्लेटफॉर्म बनाने पर ध्यान केंद्रित किया।



गांव में बार-बार बिजली जाना और इंटरनेट की कमजोर स्पीड के कारण, दादाराव और उनकी टीम को अपना काम करने के लिए एक पहाड़ी पर बने गौशाला के पास जगह बनानी पड़ी। वहां मोबाइल कनेक्टिविटी बेहतर थी। यहीं से 'Design Template' का आइडिया आया। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो डिजाइनर, छात्रों और छोटे व्यवसायों के लिए तैयार टेम्पलेट्स (बने-बनाए डिजाइन) देता है।



पीएम मोदी ने की तारीफदादाराव ने गांव के युवाओं को भी डिजाइन सिखाना शुरू किया, ताकि वे डिजिटल हुनर सीख सकें। उनके काम की चर्चा पूरे देश में हुई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 'मेक इन इंडिया' की भावना को दर्शाने के लिए उनकी तारीफ की।



दादाराव की बढ़ती सफलता के बाद वे शार्क टैंक इंडिया में पहुंचे। वहां उन्होंने 'Design Template' के बारे में बताया और boAt के को-फाउंडर और CMO अमन गुप्ता से एक डील पक्की की। अमन गुप्ता ने कंपनी में 10% हिस्सेदारी के बदले 1 करोड़ रुपये का निवेश किया।



आज, 'Design Template' दुनिया के बड़े प्लेटफॉर्म्स जैसे Canva के साथ मुकाबला कर रहा है। यह भारतीय यूजर्स के लिए खास तौर पर डिजाइन किए गए टूल्स देता है। दादाराव का लक्ष्य है कि वे भारत को डिजिटल डिजाइन के मामले में आत्मनिर्भर बनाएं। वे स्थानीय क्रिएटर्स, छात्रों और छोटे व्यवसायों को डिजिटल इकोनॉमी में आगे बढ़ने में मदद करना चाहते हैं।

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