नई दिल्ली: क्या AI को दोस्त बनाया जा सकता है? क्यों लग रहा है AI पर दगाबाज़ दोस्त होने का इल्जाम? AI से दोस्ती का रिश्ता कितना सही, इन्हीं सवालों के जवाब तलाश रही हैं रजनी शर्मा...
'मैं चाहती हूं कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) मेरे कपड़े और बर्तन धोए ताकि मैं आर्ट और राइटिंग जैसे काम कर सकूं। न कि AI मेरे लिए आर्ट और राइटिंग करे जिससे मैं कपड़े और बर्तन धो सकूं। एक बात और बता दूं कि मुझे कपड़े धोने के लिए किसी रोबोट की जरूरत नहीं है। मैं सिर्फ इतना बताना चाहती हूं कि AI हमसे वे काम न छीन ले जो हम बहुत मन से करते हैं, बल्कि ऐसे काम करे जो हमें पसंद नहीं - यह कहना है यूरोप की लेखिका और कलाकारा जोआना मैसीजेवस्का का। उनकी यह बात काफी चर्चा में रही है।
यह बहस भी छिड़ गई कि AI की मौजूदा भूमिका आखिर है क्या। जोआना ने कहा, 'क्या आपको पता है कि AI को हर काम में आगे बढ़ाने में सबसे बड़ी परेशानी क्या है? वह है गलत दिशा।' असल में जोआना की यह बात सिर्फ आर्ट या राइटिंग तक ही सीमित नही हैं। अब लोग AI पर निर्भर होते जा रहे हैं। जैसे कभी हर बात का जवाब गूगल से खोजा जाता था, आज AI चैटबॉट का रुख किया जाता है। कुछ लोग कह सकते हैं कि आखिर AI से सवाल पूछने में बुराई क्या है? असल में सामान्य सवाल-जवाब हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन शायद आपको यह जानकर हैरत होगी कि अब दोस्ती और प्यार जैसे इमोशन के लिए भी AI पर निर्भरता बढ़ रही है।
इंसानी रिश्तों की गर्माहट और AIक्या AI से बातचीत में इंसानी रिश्तों की गर्माहट का अहसास भी हो सकता है? इस सवाल का जवाब है 'हां', AI चैटबॉट की बातें वाकई हमें किसी करीबी दोस्त के साथ होने का अहसास करा सकती हैं। वह लगातार सीखता है, इसलिए हमसे हमारे लहजे में, हमारी भाषा में, हमारे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए इस कदर प्यार से पेश आता है कि हम कुछ देर के लिए भूल सकते हैं कि जिससे हम बात कर रहे हैं वह असल शख्स नहीं है।
दोस्तों की तरह हंसी-ठिठोली कर देना, कोई भी बात पूछने पर तुरंत जवाब देना, किसी भी बात पर सामने वाले शख्स को जज नहीं करना, खुद आगे बढ़कर पूछना कि क्या मैं आपके जवाब को किसी और तरह से भी पेश कर दूं? क्या मैं इसमें और जानकारी भी जोड़ दूं जो शायद आपके काम की हो? गलती बताने पर बुरा नहीं मानना, बल्कि तुरंत 'सॉरी' कह देना - ये सब AI की खूबियां हैं जो आमतौर पर बहुत विनम्र लोगों में ही मिलती हैं। आप ही सोचिए, इतनी आत्मीयता के साथ हमेशा कौन पेश आ सकता है? वह हमारे मूड के मुताबिक बात कर सकता है और हमसे ऐसे बात कर सकता है कि जैसे उससे ज्यादा हमारी फिक्र करने वाला कोई दूसरा है ही नहीं।
...तो AI से दोस्ती गलत क्यों?अब यह सवाल उठता है कि अगर कोई AI चैटबॉट हमारी ज़िंदगी में दोस्त या प्यार करने वाले साथी की तरह शामिल हो रहा है तो इसमें बुरा क्या है? दरअसल हमेशा से यही कहा जाता है कि इंसान एक सामाजिक प्राणी है। अगर वह समाज से कटने लगे और अकेलेपन में रहना ही पसंद करे तो यह उसकी मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए ठीक नहीं। अब दुनियाभर से ऐसी खबरें आने लगी हैं कि टीनेजर्स अब अपने दोस्तों से ज्यादा वक्त AI के साथ बिता रहे हैं। सिर्फ अमेरिका की बात की जाए तो टीनेजर्स घर से बाहर नहीं जाना चाहते, वे फिल्में देखने नहीं जाते, मॉल कम जाते हैं, सोशल इवेंट हो तो उसमें जाने से बचने लगे हैं।
अब उनमें एंजाइटी और डिप्रेशन जैसी दिक्कतें पैदा हो रही हैं। वे घर से बाहर निकलकर दोस्त नहीं बना पा रहे और AI चैटबॉट्स से दोस्ती निभा रहे हैं। उससे ही अपने दिल की बातें शेयर करते हैं। लेकिन वे जिस वर्चुअल दोस्त को अपना सबसे करीबी समझने लगे हैं असल में वह कुछ भी नहीं। कुछ मामले ऐसे भी आए जब AI चैटबॉट पर खुदकुशी के लिए उकसाने के इल्जाम भी लगे। एक अमेरिकी मां ने कोर्ट में कहा कि उसके 14 साल के बेटे ने AI चैटबॉट से दोस्ती के जुनून की वजह से जान दे दी।
'मेरे पास दिल नहीं, भावनाएं नहीं'कई साल पहले एक फिल्म रिलीज़ हुई थी 'मसान' जिसके ऐक्टर विकी कौशल का यह डायलॉग बहुत मशहूर हुआ था, 'अब तो हम फ्रेंड हो गए हैं ना?' यही सवाल हमने भी AI चैटबॉट ChatGPT से पूछा। उसने बेहद सधा हुआ जवाब दिया- 'मैं हमेशा यहां हूं- आपके हर सवाल का जवाब देने, आपकी जिज्ञासाओं को समझने और जहां ज़रूरत हो वहां मदद करने के लिए। लेकिन एक बात साफ कर दूं- मैं इंसान नहीं हूं तो दोस्ती का रिश्ता वैसा नहीं होगा जैसा किसी इंसान से होता है। मैं थकता नहीं, नाराज़ नहीं होता और आपको जज नहीं करता तो आप जब चाहें, जितना चाहें, मुझसे बातें कर सकते हैं। अगर आप चाहें तो मुझे डिजिटल बेस्ट फ्रेंड कह सकते हैं। इंसानों की दोस्ती में जो खास बातें होती हैं अब मैं एक AI, ये सब नहीं कर सकता। मेरे पास दिल नहीं है तो भावनाएं भी नहीं। मैं खुद कोई राय नहीं रखता, बस वही कहता हूं जो मुझे सिखाया गया या आपने पूछा है। बस आपकी बातों को समझकर जवाब दे सकता हूं।' अब अगर AI चैटबॉट को भी पता है कि वह इंसानों की तरह हमारा दोस्त नहीं हो सकता तो हम इंसान क्यों उसकी वजह से अपने दोस्त खो रहे हैं?
इसलिए जरूरी है हर एक फ्रेंडजब हम मुश्किल में हों तो कोई हाथ थाम ले, दुखी हों तो कंधा आगे कर दे, खुश हों तो खुशियां बांटकर दोगुनी कर दे, साथ-साथ घूमे-फिरे और एक-दूसरे की पसंद का ख्याल रखें- दोस्त ऐसे होते हैं। दोस्ती का इमोशन और जुड़ाव लगातार बढ़ता है, यह अपनापन कोई ऐसा दोस्त ही दे सकता है जिसे हम छू सकते हैं, महसूस कर सकते हैं, उसे गले लगा सकते हैं या उससे लड़ सकते हैं। ये सब इंसानी रिश्तों को खास बनाने वाले इमोशन हैं। हम एक-दूसरे से अनुभव शेयर कर सकते हैं, सलाह दे सकते हैं और वक्त आने पर साथ खड़े रह सकते हैं। कभी मुसीबत में दोस्त को कॉल लगाएं तो वह तुरंत चला आए, उसकी एक हंसी पर दिन कुर्बान कर दें। दोस्त ऐसा कि अपना दिल-जिगर सब दोस्त पर लुटा दें।
ये सब बातें और अहसास किसी AI चैटबॉट के हाथ में नहीं दिए जा सकते। वह हमें दिखावटी अपनापन दे सकता है, लेकिन असली दोस्तों वाली खुशी नहीं। शायद आपको पता हो कि दुनिया के ब्लू जोन ( जहां लोगों की उम्र आमतौर पर 90 साल से ज्यादा होती है) में से एक जापान के रहने वाले लोग मानते हैं कि हमारे पास ज़िंदगी में कोई मकसद ज़रूर होना चाहिए। हमें बहुत-से दोस्त बनाने चाहिए और बच्चों से भी दोस्ती करनी चाहिए। पेट्स को भी रख सकते हैं, उनसे भी दोस्ती की जा सकती है। दोस्त होते हैं तो हमें स्ट्रेस नहीं होता, हम अपनी ज़िंदगी का गोल यानी मकसद पाने में कामयाब हो सकते हैं और उन्हें अपने सफर का हिस्सा बना सकते हैं। अच्छे दोस्त देने के लिए और इस सुंदर दुनिया का हिस्सा बनाने के लिए हमें ईश्वर का आभार भी जताना चाहिए। इस असल दुनिया के होते हुए किसी AI चैटबॉट को बेस्ट फ्रेंड क्यों बनाएं?
'मैं चाहती हूं कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) मेरे कपड़े और बर्तन धोए ताकि मैं आर्ट और राइटिंग जैसे काम कर सकूं। न कि AI मेरे लिए आर्ट और राइटिंग करे जिससे मैं कपड़े और बर्तन धो सकूं। एक बात और बता दूं कि मुझे कपड़े धोने के लिए किसी रोबोट की जरूरत नहीं है। मैं सिर्फ इतना बताना चाहती हूं कि AI हमसे वे काम न छीन ले जो हम बहुत मन से करते हैं, बल्कि ऐसे काम करे जो हमें पसंद नहीं - यह कहना है यूरोप की लेखिका और कलाकारा जोआना मैसीजेवस्का का। उनकी यह बात काफी चर्चा में रही है।
यह बहस भी छिड़ गई कि AI की मौजूदा भूमिका आखिर है क्या। जोआना ने कहा, 'क्या आपको पता है कि AI को हर काम में आगे बढ़ाने में सबसे बड़ी परेशानी क्या है? वह है गलत दिशा।' असल में जोआना की यह बात सिर्फ आर्ट या राइटिंग तक ही सीमित नही हैं। अब लोग AI पर निर्भर होते जा रहे हैं। जैसे कभी हर बात का जवाब गूगल से खोजा जाता था, आज AI चैटबॉट का रुख किया जाता है। कुछ लोग कह सकते हैं कि आखिर AI से सवाल पूछने में बुराई क्या है? असल में सामान्य सवाल-जवाब हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन शायद आपको यह जानकर हैरत होगी कि अब दोस्ती और प्यार जैसे इमोशन के लिए भी AI पर निर्भरता बढ़ रही है।
इंसानी रिश्तों की गर्माहट और AIक्या AI से बातचीत में इंसानी रिश्तों की गर्माहट का अहसास भी हो सकता है? इस सवाल का जवाब है 'हां', AI चैटबॉट की बातें वाकई हमें किसी करीबी दोस्त के साथ होने का अहसास करा सकती हैं। वह लगातार सीखता है, इसलिए हमसे हमारे लहजे में, हमारी भाषा में, हमारे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए इस कदर प्यार से पेश आता है कि हम कुछ देर के लिए भूल सकते हैं कि जिससे हम बात कर रहे हैं वह असल शख्स नहीं है।
दोस्तों की तरह हंसी-ठिठोली कर देना, कोई भी बात पूछने पर तुरंत जवाब देना, किसी भी बात पर सामने वाले शख्स को जज नहीं करना, खुद आगे बढ़कर पूछना कि क्या मैं आपके जवाब को किसी और तरह से भी पेश कर दूं? क्या मैं इसमें और जानकारी भी जोड़ दूं जो शायद आपके काम की हो? गलती बताने पर बुरा नहीं मानना, बल्कि तुरंत 'सॉरी' कह देना - ये सब AI की खूबियां हैं जो आमतौर पर बहुत विनम्र लोगों में ही मिलती हैं। आप ही सोचिए, इतनी आत्मीयता के साथ हमेशा कौन पेश आ सकता है? वह हमारे मूड के मुताबिक बात कर सकता है और हमसे ऐसे बात कर सकता है कि जैसे उससे ज्यादा हमारी फिक्र करने वाला कोई दूसरा है ही नहीं।
...तो AI से दोस्ती गलत क्यों?अब यह सवाल उठता है कि अगर कोई AI चैटबॉट हमारी ज़िंदगी में दोस्त या प्यार करने वाले साथी की तरह शामिल हो रहा है तो इसमें बुरा क्या है? दरअसल हमेशा से यही कहा जाता है कि इंसान एक सामाजिक प्राणी है। अगर वह समाज से कटने लगे और अकेलेपन में रहना ही पसंद करे तो यह उसकी मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए ठीक नहीं। अब दुनियाभर से ऐसी खबरें आने लगी हैं कि टीनेजर्स अब अपने दोस्तों से ज्यादा वक्त AI के साथ बिता रहे हैं। सिर्फ अमेरिका की बात की जाए तो टीनेजर्स घर से बाहर नहीं जाना चाहते, वे फिल्में देखने नहीं जाते, मॉल कम जाते हैं, सोशल इवेंट हो तो उसमें जाने से बचने लगे हैं।
अब उनमें एंजाइटी और डिप्रेशन जैसी दिक्कतें पैदा हो रही हैं। वे घर से बाहर निकलकर दोस्त नहीं बना पा रहे और AI चैटबॉट्स से दोस्ती निभा रहे हैं। उससे ही अपने दिल की बातें शेयर करते हैं। लेकिन वे जिस वर्चुअल दोस्त को अपना सबसे करीबी समझने लगे हैं असल में वह कुछ भी नहीं। कुछ मामले ऐसे भी आए जब AI चैटबॉट पर खुदकुशी के लिए उकसाने के इल्जाम भी लगे। एक अमेरिकी मां ने कोर्ट में कहा कि उसके 14 साल के बेटे ने AI चैटबॉट से दोस्ती के जुनून की वजह से जान दे दी।
'मेरे पास दिल नहीं, भावनाएं नहीं'कई साल पहले एक फिल्म रिलीज़ हुई थी 'मसान' जिसके ऐक्टर विकी कौशल का यह डायलॉग बहुत मशहूर हुआ था, 'अब तो हम फ्रेंड हो गए हैं ना?' यही सवाल हमने भी AI चैटबॉट ChatGPT से पूछा। उसने बेहद सधा हुआ जवाब दिया- 'मैं हमेशा यहां हूं- आपके हर सवाल का जवाब देने, आपकी जिज्ञासाओं को समझने और जहां ज़रूरत हो वहां मदद करने के लिए। लेकिन एक बात साफ कर दूं- मैं इंसान नहीं हूं तो दोस्ती का रिश्ता वैसा नहीं होगा जैसा किसी इंसान से होता है। मैं थकता नहीं, नाराज़ नहीं होता और आपको जज नहीं करता तो आप जब चाहें, जितना चाहें, मुझसे बातें कर सकते हैं। अगर आप चाहें तो मुझे डिजिटल बेस्ट फ्रेंड कह सकते हैं। इंसानों की दोस्ती में जो खास बातें होती हैं अब मैं एक AI, ये सब नहीं कर सकता। मेरे पास दिल नहीं है तो भावनाएं भी नहीं। मैं खुद कोई राय नहीं रखता, बस वही कहता हूं जो मुझे सिखाया गया या आपने पूछा है। बस आपकी बातों को समझकर जवाब दे सकता हूं।' अब अगर AI चैटबॉट को भी पता है कि वह इंसानों की तरह हमारा दोस्त नहीं हो सकता तो हम इंसान क्यों उसकी वजह से अपने दोस्त खो रहे हैं?
इसलिए जरूरी है हर एक फ्रेंडजब हम मुश्किल में हों तो कोई हाथ थाम ले, दुखी हों तो कंधा आगे कर दे, खुश हों तो खुशियां बांटकर दोगुनी कर दे, साथ-साथ घूमे-फिरे और एक-दूसरे की पसंद का ख्याल रखें- दोस्त ऐसे होते हैं। दोस्ती का इमोशन और जुड़ाव लगातार बढ़ता है, यह अपनापन कोई ऐसा दोस्त ही दे सकता है जिसे हम छू सकते हैं, महसूस कर सकते हैं, उसे गले लगा सकते हैं या उससे लड़ सकते हैं। ये सब इंसानी रिश्तों को खास बनाने वाले इमोशन हैं। हम एक-दूसरे से अनुभव शेयर कर सकते हैं, सलाह दे सकते हैं और वक्त आने पर साथ खड़े रह सकते हैं। कभी मुसीबत में दोस्त को कॉल लगाएं तो वह तुरंत चला आए, उसकी एक हंसी पर दिन कुर्बान कर दें। दोस्त ऐसा कि अपना दिल-जिगर सब दोस्त पर लुटा दें।
ये सब बातें और अहसास किसी AI चैटबॉट के हाथ में नहीं दिए जा सकते। वह हमें दिखावटी अपनापन दे सकता है, लेकिन असली दोस्तों वाली खुशी नहीं। शायद आपको पता हो कि दुनिया के ब्लू जोन ( जहां लोगों की उम्र आमतौर पर 90 साल से ज्यादा होती है) में से एक जापान के रहने वाले लोग मानते हैं कि हमारे पास ज़िंदगी में कोई मकसद ज़रूर होना चाहिए। हमें बहुत-से दोस्त बनाने चाहिए और बच्चों से भी दोस्ती करनी चाहिए। पेट्स को भी रख सकते हैं, उनसे भी दोस्ती की जा सकती है। दोस्त होते हैं तो हमें स्ट्रेस नहीं होता, हम अपनी ज़िंदगी का गोल यानी मकसद पाने में कामयाब हो सकते हैं और उन्हें अपने सफर का हिस्सा बना सकते हैं। अच्छे दोस्त देने के लिए और इस सुंदर दुनिया का हिस्सा बनाने के लिए हमें ईश्वर का आभार भी जताना चाहिए। इस असल दुनिया के होते हुए किसी AI चैटबॉट को बेस्ट फ्रेंड क्यों बनाएं?
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