नई दिल्ली: रूस सहित ओपेक+ देशों ने दिसंबर में तेल उत्पादन में थोड़ी बढ़ोतरी करने का फैसला किया है। इसके बाद 2026 की पहली तिमाही में उत्पादन बढ़ाने की रफ्तार पर रोक लगा दी जाएगी। यह फैसला रविवार को ओपेक+ देशों के बीच हुई बैठक में लिया गया। इसमें आठ देशों ने हिस्सा लिया। ओपेक+ देशों का यह फैसला, खासकर 2026 की पहली तिमाही में उत्पादन बढ़ोतरी की रफ्तार को रोकने का निर्णय, भारत के लिए चिंताजनक है। ओपेक+ दुनिया के तेल उत्पादक और निर्यातक देशों का प्रभावशाली गठबंधन है। इसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक तेल बाजार को स्थिर रखने के साथ कच्चे तेल की कीमतों को प्रभावित करना है। इसमें 22 देश शामिल हैं।
ओपेक+ देशों ने तय किया है कि वे दिसंबर में हर दिन 137,000 बैरल तेल का उत्पादन बढ़ाएंगे। यह बढ़ोतरी छोटी है। इसके बाद अगले साल यानी 2026 के पहले तीन महीनों (जनवरी, फरवरी, मार्च) में तेल उत्पादन बढ़ाने की रफ्तार को रोक दिया जाएगा। ओपेक+ ने एक बयान जारी कर यह जानकारी दी है।
फैसले की टाइमिंंग बहुत महत्वपूर्ण
यह फैसला रविवार को ओपेक+ देशों के बीच हुई एक बैठक में लिया गया। इस बैठक में आठ देशों ने हिस्सा लिया। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब दुनिया भर में तेल की मांग और सप्लाई को लेकर लगातार चर्चाएं चल रही हैं। तेल की कीमतें भी बाजार में उतार-चढ़ाव दिखा रही हैं। ओपेक+ देशों का यह कदम वैश्विक तेल बाजार को प्रभावित कर सकता है।
भारत पर सीधे होगा असरचूंकि उत्पादन में बढ़ोतरी सिर्फ दिसंबर के लिए छोटी है (137,000 बैरल/दिन), यह वैश्विक मांग को पूरी तरह से पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इससे बाजार को यह संकेत मिलता है कि सप्लाई टाइट रहेगी। उत्पादन में बढ़ोतरी पर रोक लगाने का मतलब है कि कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें और बढ़ सकती हैं। भारत अपनी 85% से अधिक तेल की जरूरत आयात करता है। कच्चे तेल की ऊंची कीमतें सीधे तौर पर देश में पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों को प्रभावित करेंगी। इससे महंगाई बढ़ेगी। कच्चे तेल के लिए अधिक भुगतान करने से भारत का आयात बिल बढ़ जाएगा। इससे डॉलर भंडार घटेगा। डॉलर की बढ़ती मांग से भारतीय रुपया कमजोर हो सकता है, जिससे आयात और महंगा हो जाएगा। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अगर वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें ऊंची रहती हैं और मांग मजबूत होती है तो रूस जैसे देश भारत को दिए जाने वाले डिस्काउंट को कम कर सकते हैं। इससे भारत का तेल आयात और महंगा हो जाएगा।
ओपेक+ देशों ने तय किया है कि वे दिसंबर में हर दिन 137,000 बैरल तेल का उत्पादन बढ़ाएंगे। यह बढ़ोतरी छोटी है। इसके बाद अगले साल यानी 2026 के पहले तीन महीनों (जनवरी, फरवरी, मार्च) में तेल उत्पादन बढ़ाने की रफ्तार को रोक दिया जाएगा। ओपेक+ ने एक बयान जारी कर यह जानकारी दी है।
फैसले की टाइमिंंग बहुत महत्वपूर्ण
यह फैसला रविवार को ओपेक+ देशों के बीच हुई एक बैठक में लिया गया। इस बैठक में आठ देशों ने हिस्सा लिया। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब दुनिया भर में तेल की मांग और सप्लाई को लेकर लगातार चर्चाएं चल रही हैं। तेल की कीमतें भी बाजार में उतार-चढ़ाव दिखा रही हैं। ओपेक+ देशों का यह कदम वैश्विक तेल बाजार को प्रभावित कर सकता है।
भारत पर सीधे होगा असरचूंकि उत्पादन में बढ़ोतरी सिर्फ दिसंबर के लिए छोटी है (137,000 बैरल/दिन), यह वैश्विक मांग को पूरी तरह से पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इससे बाजार को यह संकेत मिलता है कि सप्लाई टाइट रहेगी। उत्पादन में बढ़ोतरी पर रोक लगाने का मतलब है कि कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें और बढ़ सकती हैं। भारत अपनी 85% से अधिक तेल की जरूरत आयात करता है। कच्चे तेल की ऊंची कीमतें सीधे तौर पर देश में पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों को प्रभावित करेंगी। इससे महंगाई बढ़ेगी। कच्चे तेल के लिए अधिक भुगतान करने से भारत का आयात बिल बढ़ जाएगा। इससे डॉलर भंडार घटेगा। डॉलर की बढ़ती मांग से भारतीय रुपया कमजोर हो सकता है, जिससे आयात और महंगा हो जाएगा। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अगर वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें ऊंची रहती हैं और मांग मजबूत होती है तो रूस जैसे देश भारत को दिए जाने वाले डिस्काउंट को कम कर सकते हैं। इससे भारत का तेल आयात और महंगा हो जाएगा।
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