भूमि, भवन, गृह योग (चतुर्थ भाव) - भूमि, भवन, घर, फ्लैट, मानव जीवन का पृथ्वी पर, सुखपूर्वक रहने का परम लक्ष्य एवं उसकी पहचान का पर्याय है। स्वयं का भवन मकान होना वर्तमान संदर्भ में अस्तित्व, पुरुषार्थ, पराक्रम की पहली पहचान है जिसे जन्मकुण्डली के चतुर्थ सुख भाव से जाना जा सकता है। जन्मपत्रिका में गृह योग होने पर जातक के पास स्वयं का मकान होता है, उसे किराए के मकान में नहीं रहना पड़ता है।ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से किसी भी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में चतुर्थ भाव एवं चतुर्थ भाव के स्वामी जिसे चतुर्थेश कहते है, जितने मजबूत रहेंगे, तो उस व्यक्ति को उचित दशा में भूमि, मकान आदि का सुख मिलता है। इसके लिए भूमि-भवन के कारक ग्रह पर भी विचार आवश्यक होता है।
- उत्तम भूमि, भवन, मकान सुख की प्राप्ति हेतु चतुर्थेश जन्म कुण्डली के केन्द्र-त्रिकोण में मजबूत स्थिति में होना सबसे आवश्यक शर्त है।
- यदि चतुर्थ स्थान का स्वामी चतुर्थेश अपनी उच्च राशि में हो,. अपनी मूत्र त्रिकोण राशि में स्थित हो, स्वग्रही हो, उच्चाभिलाषी हो, शुभ ग्रहों से युक्त व दृष्ट हों तो निश्चय ही उपर्युक्त भूमि, भवन, मकान आदि की चतुर्थेश के बलाबल के अनुसार प्राप्ति होती है।
- योगकारक ग्रह की दशा-अन्तर्दशा आने पर अथवा चतुर्थेश की दशा-अन्तर्दशा आने पर जब ग्रहों का गोचर अनुकूल होता है तो व्यक्ति भूमि, भवन प्राप्त करता है।
- अचल सम्पति, भवन, भूमि इत्यादि का कारक ग्रह मंगल है। अतः जन्मकुण्डली में मंगल उच्च, स्वगृही, मल त्रिकोण या शुभ स्थानस्थ हो तो उत्तम अचल सम्पति भवनादि की प्राप्ति होती है।
- चतुर्थेश एवं दशमेश आपस में स्थान परिवर्तन किए हों और बलवान मंगल की दृष्टि उस भाव पर हो तो भू सम्पति या अचल सम्पति का योग होता है।
- चतुर्थेश, सप्तम भाव में और शुक्र चौथे भाव में हो और इन दोनों की परस्पर मैत्री हो तो स्त्री द्वारा भूमि, भवन की प्राप्ति होती है।
- जन्मकुण्डली के चतुर्थ भाव में यदि पाप ग्रह स्थित हो अथवा पाप ग्रह चतुर्थ सुख भाव को देखता हो तो जातक गृह सुख से वंचित रहता है।
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