नई दिल्ली:  दिल्ली पुलिस मुठभेड़ों में अपराधियों का मारा जाना हमेशा से चर्चा और विवाद का विषय रहा है। समाज में एक वर्ग इसे कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जरूरत मानता है, जबकि दूसरा वर्ग इसे मानवाधिकार के उल्लंघन के रूप में देखता है। इस वजह से ऐसी हर मुठभेड़ के बाद जांच और जवाबदेही की मांग उठती है।आखिर पुलिस एनकाउंटर की पूरी प्रक्रिया क्या होती है, इसी पर विस्तार से बता रहे हैं।   
   
हरियाणा कारोबारी का पहला एनकाउंटर
दिल्ली पुलिस के इतिहास में 31 मार्च 1997 का दिन काले अध्याय के रूप में देखा जाता है। ये वो दिन था जब क्राइम ब्रांच ने दिनदहाड़े कनॉट प्लेस में एक खूनी एनकाउंटर किया। हरियाणा के दो कारोबारी प्रदीप गोयल और जगजीत सिंह की मौत हो गई, जबकि तरुणप्रीत दिव्यांग हो गए।
   
24 घंटों में पद से हटाया
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार ने दावा किया था कि कार से गोलियां चली तो क्राइम ब्रांच ने सेल्फ डिफेंस में फायरिंग की थी। खैर, 24 घंटे में उन्हें हटा दिया गया। एसीपी और इंस्पेक्टर समेत 10 पुलिसवालों को उम्रकैद की सजा मिली, जो 16 साल तक जेल में रहे। ये ऐसा वाकिया है, जो पुलिस एनकाउंटर को सवालों के घेरे में खड़ा करता है।
   
शहादत हुई, उंगली भी उठी
इसी दिल्ली पुलिस के खाते में एक ऐसा एनकाउंटर भी है, जब उसका एक इंस्पेक्टर शहीद हो गया था। बात 19 सितंबर 2008 की है, जब स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा जामिया नगर के बटला हाउस में आतंकी मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। इस एनकाउंटर में दो आतंकी ढेर हो गए, जबकि दो गिरफ्तार कर लिए गए। एक आतंकी भागने में सफल रहा।
   
पुलिस को मिली क्लीन चिट
इस एनकाउंटर को लेकर भी तमाम सवाल खड़े किए गए थे, लेकिन सभी जांच में पुलिस को क्लीन चिट मिली। मोहन चंद्र शर्मा को भारत सरकार ने बाद में मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया।
   
एनकाउंटर शब्द कहां से आया
दरअसल संविधान और कानून में एनकाउंटर का कोई जिक्र नहीं है।को खत्म करने से Image संविधान या कानून में कहीं भी एनकाउंटर का जिक्र नहीं है। आमतौर पर पुलिस या सुरक्षा बलों और अपराधियों या आतंकियों के बीच होने वाली भिड़ंत को मुठभेड़ या एनकाउंटर कहा जाने लगा। इसका आगाज 1990 से 2000 के बीच मुंबई अंडरवर्ल्ड हुआ।
   
इस दौरान हुए 600 से ज्यादा एनकाउंटर
केंद्र सरकार ने 8 फरवरी 2022 में संसद में एक सवाल के जवाब में बताया था कि 1 जनवरी 2017 से 31 जनवरी 2022 तक देश भर में कुल 655 किलिंग एनकाउंटर हुए थे। सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ में 191 तो यूपी में 117 हुए थे। इस अवधि में दिल्ली में हुए एनकाउंटर में 8 बदमाश मारे गए थे। इस साल यूपी में अब तक एनकाउंटर में 41 को मौत के घाट उतारा गया, जबकि दिल्ली में 16 मई 2024 से 23 अक्टूबर 25 के बीच 9 एनकाउंटर में 15 बदमाशों को ढेर किया गया।
   
सेल्फ डिफेंस में फायरिंग करती है पुलिस
पुलिस को सिर्फ परिस्थितियों में ही अपराधी या आतंकियों पर गोली चलाने का कानूनी अधिकार होता है। एनफोर्समेंट डायरेक्ट्रेट (ED) के डायरेक्टर रह चुके करनैल सिंह कहते हैं, 'कोई उम्रकैद या फांसी की सजा तक का जुर्म कर चुका आरोपी कस्टडी से भागने की कोशिश करता है तो पुलिस फायरिंग कर सकती है। इसी तरह किसी आरोपी ने गोली चलाई तो सेल्फ डिफेंस में पुलिस फायरिंग कर सकती है। पुलिस अक्सर सेल्फ डिफेंस में ही एनकाउंटर को अंजाम देती है।
   
क्यों बढ़ते जा रहे हैं एनकाउंटर ?
पूर्व आईपीएस अधिकारी करनैल सिंह कहते हैं, 'कई बार अपराधी अपने गैंग बना लेते हैं। पुलिस जब पकड़ने की कोशिश करती है तो उन्हें लगता है कि जेल जाने पर गैंग बिखर जाएगा, एक्सटॉर्शन और लैंड ग्रैबिंग जैसे अपराध से पैसा आना बंद हो जाएगा। इसलिए ये पुलिस पर फायरिंग कर भागना चाहते हैं। पुलिस इन्हें नहीं पकड़ती है तो वो फिर वो आम जनता के लिए दिक्कत पैदा करेंगे। ऐसे में सेल्फ डिफेंस में गोली चलानी पड़ती है।'
   
चर्चा में रहे एनकाउंटर
   
   
   
   
   
   
   
   
   
   
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट
   
   
   
   
   
   
   
   
   
  
हरियाणा कारोबारी का पहला एनकाउंटर
दिल्ली पुलिस के इतिहास में 31 मार्च 1997 का दिन काले अध्याय के रूप में देखा जाता है। ये वो दिन था जब क्राइम ब्रांच ने दिनदहाड़े कनॉट प्लेस में एक खूनी एनकाउंटर किया। हरियाणा के दो कारोबारी प्रदीप गोयल और जगजीत सिंह की मौत हो गई, जबकि तरुणप्रीत दिव्यांग हो गए।
24 घंटों में पद से हटाया
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार ने दावा किया था कि कार से गोलियां चली तो क्राइम ब्रांच ने सेल्फ डिफेंस में फायरिंग की थी। खैर, 24 घंटे में उन्हें हटा दिया गया। एसीपी और इंस्पेक्टर समेत 10 पुलिसवालों को उम्रकैद की सजा मिली, जो 16 साल तक जेल में रहे। ये ऐसा वाकिया है, जो पुलिस एनकाउंटर को सवालों के घेरे में खड़ा करता है।
शहादत हुई, उंगली भी उठी
इसी दिल्ली पुलिस के खाते में एक ऐसा एनकाउंटर भी है, जब उसका एक इंस्पेक्टर शहीद हो गया था। बात 19 सितंबर 2008 की है, जब स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा जामिया नगर के बटला हाउस में आतंकी मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। इस एनकाउंटर में दो आतंकी ढेर हो गए, जबकि दो गिरफ्तार कर लिए गए। एक आतंकी भागने में सफल रहा।
पुलिस को मिली क्लीन चिट
इस एनकाउंटर को लेकर भी तमाम सवाल खड़े किए गए थे, लेकिन सभी जांच में पुलिस को क्लीन चिट मिली। मोहन चंद्र शर्मा को भारत सरकार ने बाद में मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया।
एनकाउंटर शब्द कहां से आया
दरअसल संविधान और कानून में एनकाउंटर का कोई जिक्र नहीं है।को खत्म करने से Image संविधान या कानून में कहीं भी एनकाउंटर का जिक्र नहीं है। आमतौर पर पुलिस या सुरक्षा बलों और अपराधियों या आतंकियों के बीच होने वाली भिड़ंत को मुठभेड़ या एनकाउंटर कहा जाने लगा। इसका आगाज 1990 से 2000 के बीच मुंबई अंडरवर्ल्ड हुआ।
इस दौरान हुए 600 से ज्यादा एनकाउंटर
केंद्र सरकार ने 8 फरवरी 2022 में संसद में एक सवाल के जवाब में बताया था कि 1 जनवरी 2017 से 31 जनवरी 2022 तक देश भर में कुल 655 किलिंग एनकाउंटर हुए थे। सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ में 191 तो यूपी में 117 हुए थे। इस अवधि में दिल्ली में हुए एनकाउंटर में 8 बदमाश मारे गए थे। इस साल यूपी में अब तक एनकाउंटर में 41 को मौत के घाट उतारा गया, जबकि दिल्ली में 16 मई 2024 से 23 अक्टूबर 25 के बीच 9 एनकाउंटर में 15 बदमाशों को ढेर किया गया।
सेल्फ डिफेंस में फायरिंग करती है पुलिस
पुलिस को सिर्फ परिस्थितियों में ही अपराधी या आतंकियों पर गोली चलाने का कानूनी अधिकार होता है। एनफोर्समेंट डायरेक्ट्रेट (ED) के डायरेक्टर रह चुके करनैल सिंह कहते हैं, 'कोई उम्रकैद या फांसी की सजा तक का जुर्म कर चुका आरोपी कस्टडी से भागने की कोशिश करता है तो पुलिस फायरिंग कर सकती है। इसी तरह किसी आरोपी ने गोली चलाई तो सेल्फ डिफेंस में पुलिस फायरिंग कर सकती है। पुलिस अक्सर सेल्फ डिफेंस में ही एनकाउंटर को अंजाम देती है।
क्यों बढ़ते जा रहे हैं एनकाउंटर ?
पूर्व आईपीएस अधिकारी करनैल सिंह कहते हैं, 'कई बार अपराधी अपने गैंग बना लेते हैं। पुलिस जब पकड़ने की कोशिश करती है तो उन्हें लगता है कि जेल जाने पर गैंग बिखर जाएगा, एक्सटॉर्शन और लैंड ग्रैबिंग जैसे अपराध से पैसा आना बंद हो जाएगा। इसलिए ये पुलिस पर फायरिंग कर भागना चाहते हैं। पुलिस इन्हें नहीं पकड़ती है तो वो फिर वो आम जनता के लिए दिक्कत पैदा करेंगे। ऐसे में सेल्फ डिफेंस में गोली चलानी पड़ती है।'
चर्चा में रहे एनकाउंटर
- असद अहमद को किया था ढेर
 
- सुर्खियों में रहा इशरत जहां केस
 
- चर्चा में रहा विकास दुबे केस
 
- हैदराबाद केस का हल्ला
 
- सोहराबुद्दीन शेख का पेच
 
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट
- प्रदीप शर्मा (मुंबई पुलिस)
 
- दया नायक (मुंबई पुलिस)
 
- प्रफुल भोसले (मुंबई पुलिस)
 
- राजबीर सिंह (दिल्ली पुलिस)
 
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