बीजिंग: चीन और अमेरिका दुनिया के दो देश हैं जो छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान बना रहे हैं। चीन J-36 नाम से स्टील्थ छठी पीढ़ी का लड़ाकू विमान बना रहा है तो अमेरिका के छठी पीढ़ी के जेट का नाम F-47 है। चीनी J-36 लड़ाकू विमान को चेंगदू एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन डेवलप कर रहा है, जो करीब 50 से 60 टन वजनी है। ये चीन के मौजूदा पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान J-20 से काफी बड़ा है और एक तरह से स्ट्रैटजिक बॉम्बर की तरह दिख रहा है। इसमें दो इंजन हैं, टेल लेस डिजाइन है और साइड-बाय-साइड कॉकपिट इसे सिर्फ एक लड़ाकू विमान नहीं, बल्कि एयरबोर्न कमांड-एंड-कंट्रोल हब बनाता है, जो पायलट के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर और ड्रोन नेटवर्किंग जैसे मिशन संभाल सके।
इसके अलावा J-36 का ढांचा ब्लेंडेड विंग-बॉडी स्टाइल में बनाया गया है, जिसमें वर्टिकल स्टेबलाइजर को हटाकर इसकी रडार सिग्नेचर को बेहद कम कर दिया गया है। जिससे इसे रडार के लिए ट्रैक करना अत्यंत मुश्किल होगा। इसके अलावा इसमें बड़े इंटरनल वेपन बे हैं, जो आठ तक लंबी दूरी की एयर-टू-एयर या प्रिसीजन स्ट्राइक मिसाइलें ले जा सकते हैं। इसके अलावा ये शॉर्ट-रेंज मिसाइलें ले जाने में भी सक्षम हैं। बात अगर एनर्जी की करें तो इसमें नेक्स्ट जेनरेशन के WS-15 आफ्टरबर्निंग टर्बोफैन इंजन लगाए जा रहे हैं, जो 18 किलोटन से ज्यादा थ्रस्ट देने में सक्षम हो सकते हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह विमान आवाज की रफ्तार से 1.5 की स्पीड पर बिना आफ्टरबर्नर के लगातार क्रूज कर सकता है, जो इसे दुश्मन क्षेत्र में गहराई तक घुसकर ऑपरेशन करने की ताकत देगा।
इंडो-पैसिफिक में कौन जीतेगा आसमान?
वहीं बात अगर अमेरिकी छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान F-47 की बात करें तो ये नेक्स्ट जनरेशन एयर डॉमिनेंस (NGAD) प्रोग्राम का हिस्सा है, जिसे अब F-47 कहा जाता है। यह लड़ाकू विमान एडैप्टिव-साइकिल प्रोपल्शन, डिस्ट्रिब्यूटेड सेंसर आर्किटेक्चर और ऑनबोर्ड AI जैसी खूबियों से लैस होगा। F-47 की सबसे खतरनाक ताकत उसकी Collaborative Combat Aircraft (CCA) नेटवर्क होगा, यानि वो अपने साथ ड्रोन के एक झुंड को लेकर चलेगा और मल्टीपल फोर्स का निर्माण करेगा। इससे एक साथ कई ठिकानों पर सटीक हमला करने की शक्ति इसके पास होगी। यानी F-47 लड़ाकू विमान सीधे दुश्मन की सबसे चुनौतीपूर्ण एयर डिफेंस नेटवर्क में घुसकर 3 हजार किलोमीटर से ज्यादा की रेंज और सटीक स्टील्थ पेलोड्स के साथ विनाशक हमले कर सकता है।
यानि चीन और अमेरिका, दोनों ही छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान जल्द से जल्द बनाकर आसमान में अपना वर्चस्व हासिल करना चाहते हैं। J-36 और F-47 लड़ाकू विमानों के डेवलपमेंट के साथ ही ये तय हो गया है कि छठी पीढ़ी की हवाई जंग अब सिर्फ टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि जियो-पॉलिटिकल वर्चस्व की लड़ाई भी है। चीन अपने J-36 के जरिए अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने और फर्स्ट आइलैंड चेन से बाहर पावर प्रोजेक्शन करने का इरादा दिखा रहा है। वहीं अमेरिका जल्द से जल्द F-47 प्रोजेक्ट को फाइनल कर चीन को संदेश देना चाहता है कि अभी वही असली सुपरपावर है।
इसके अलावा J-36 का ढांचा ब्लेंडेड विंग-बॉडी स्टाइल में बनाया गया है, जिसमें वर्टिकल स्टेबलाइजर को हटाकर इसकी रडार सिग्नेचर को बेहद कम कर दिया गया है। जिससे इसे रडार के लिए ट्रैक करना अत्यंत मुश्किल होगा। इसके अलावा इसमें बड़े इंटरनल वेपन बे हैं, जो आठ तक लंबी दूरी की एयर-टू-एयर या प्रिसीजन स्ट्राइक मिसाइलें ले जा सकते हैं। इसके अलावा ये शॉर्ट-रेंज मिसाइलें ले जाने में भी सक्षम हैं। बात अगर एनर्जी की करें तो इसमें नेक्स्ट जेनरेशन के WS-15 आफ्टरबर्निंग टर्बोफैन इंजन लगाए जा रहे हैं, जो 18 किलोटन से ज्यादा थ्रस्ट देने में सक्षम हो सकते हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह विमान आवाज की रफ्तार से 1.5 की स्पीड पर बिना आफ्टरबर्नर के लगातार क्रूज कर सकता है, जो इसे दुश्मन क्षेत्र में गहराई तक घुसकर ऑपरेशन करने की ताकत देगा।
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वहीं बात अगर अमेरिकी छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान F-47 की बात करें तो ये नेक्स्ट जनरेशन एयर डॉमिनेंस (NGAD) प्रोग्राम का हिस्सा है, जिसे अब F-47 कहा जाता है। यह लड़ाकू विमान एडैप्टिव-साइकिल प्रोपल्शन, डिस्ट्रिब्यूटेड सेंसर आर्किटेक्चर और ऑनबोर्ड AI जैसी खूबियों से लैस होगा। F-47 की सबसे खतरनाक ताकत उसकी Collaborative Combat Aircraft (CCA) नेटवर्क होगा, यानि वो अपने साथ ड्रोन के एक झुंड को लेकर चलेगा और मल्टीपल फोर्स का निर्माण करेगा। इससे एक साथ कई ठिकानों पर सटीक हमला करने की शक्ति इसके पास होगी। यानी F-47 लड़ाकू विमान सीधे दुश्मन की सबसे चुनौतीपूर्ण एयर डिफेंस नेटवर्क में घुसकर 3 हजार किलोमीटर से ज्यादा की रेंज और सटीक स्टील्थ पेलोड्स के साथ विनाशक हमले कर सकता है।
यानि चीन और अमेरिका, दोनों ही छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान जल्द से जल्द बनाकर आसमान में अपना वर्चस्व हासिल करना चाहते हैं। J-36 और F-47 लड़ाकू विमानों के डेवलपमेंट के साथ ही ये तय हो गया है कि छठी पीढ़ी की हवाई जंग अब सिर्फ टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि जियो-पॉलिटिकल वर्चस्व की लड़ाई भी है। चीन अपने J-36 के जरिए अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने और फर्स्ट आइलैंड चेन से बाहर पावर प्रोजेक्शन करने का इरादा दिखा रहा है। वहीं अमेरिका जल्द से जल्द F-47 प्रोजेक्ट को फाइनल कर चीन को संदेश देना चाहता है कि अभी वही असली सुपरपावर है।
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