पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया समाप्त होने के बाद अब सभी राजनीतिक दलों की नज़र राज्य के लगभग 50 लाख प्रवासी मतदाताओं पर टिकी है, जिन्हें कई राजनीतिक पंडित इस चुनाव का परिणाम तय करने वाला 'किंगमेकर' मान रहे हैं। देश भर में अनौपचारिक रोजगार में लगे ये प्रवासी मतदाता स्थानीय जातिगत समीकरणों के साथ-साथ चुनावी नतीजों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं।
सभी राजनीतिक दल प्रवासी वोटों को आकर्षित करने में जुटे हैं, लेकिन किसी ने भी उनके मताधिकार को सुनिश्चित करने के लिए इसे कानूनी अधिकार के रूप में संस्थागत बनाने की कोई इच्छा नहीं दिखाई है, जिससे वे राजनीतिक संरक्षण पर निर्भर न रहें।
70 शहरों में प्रवासी मजदूरों तक पहुंचने की कोशिश
बीजेपी ने मार्च से ही देश के 70 शहरों में प्रवासी मजदूरों तक पहुंचना शुरू कर दिया था। पार्टी कोविड-19 संकट के दौरान शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं की पोर्टेबिलिटी (एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाभ लेने की सुविधा) पर जोर दे रही है। प्रधानमंत्री मोदी की मॉरीशस यात्रा के दौरान भोजपुरी भाषा के सांस्कृतिक महत्व की सराहना करने को भी बिहारी प्रवासियों को साधने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। एनडीए की सहयोगी जेडीयू भी प्रवासियों को अपने पाले में बनाए रखने को लेकर चिंतित है, क्योंकि 2005 के चुनावों में इन वोटों ने पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाई थी।
आरजेडी ने पलायन को सरकारी विफलता से जोड़ा
आरजेडी ने राज्य से पलायन को सरकारी विफलता से जोड़ा है और "हर परिवार को सरकारी नौकरी" देने का वादा किया है, जिसका सीधा लक्ष्य प्रवासी मज़दूरों को लुभाना है। सहयोगी कांग्रेस ने भी "पलायन रोको, नौकरी दो" रैली के ज़रिए रोज़गार सृजन की मांग की है। आरजेडी अपने पारंपरिक यादव-मुस्लिम गठजोड़ का इस्तेमाल इन समुदायों के प्रवासियों को आकर्षित करने के लिए करेगी, जबकि महागठबंधन अपने संदेशों को सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय के व्यापक आख्यान के भीतर रखेगा।
प्रवासी वोटरों का विभाजन
राजनीतिक दल प्रवासियों को एक समान समूह के रूप में देखने के बजाय, उन्हें उनके सामाजिक और जातिगत समूहों के सदस्य के रूप में साधने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। बीजेपी उच्च जाति (सवर्ण) प्रवासियों पर दांव लगाएगी, जो उसके पारंपरिक समर्थक हैं।
एनडीए की ओर से प्रवासी श्रमिकों के बीच समर्थन जुटाने के लिए राष्ट्रीय मुद्दों पर जोर दिया जाता है। जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा में सुधार जैसे रक्षा और सुरक्षा के मुद्दों का ज़िक्र केवल देशभक्ति जगाने के लिए नहीं है, बल्कि यह उन प्रवासियों की चिंताओं को सीधे संबोधित करता है जो सीमावर्ती राज्यों में रोज़गार तलाशते हैं।
मतदान और त्योहारों का टकराव
चुनाव आयोग ने दिवाली और छठ पूजा के कुछ ही हफ्तों के भीतर मतदान की तारीखें तय की हैं। आयोग को उम्मीद है कि त्योहारों के लिए घर लौटने वाले प्रवासी रुककर वोट करेंगे। हालांकि, यह उम्मीद प्रवासियों की आर्थिक बाधाओं से टकराती है। काम से लंबी अनुपस्थिति का मतलब है मज़दूरी का नुक्सान, जिससे उनका घर लौटकर वोट देना मुश्किल हो सकता है।
ऐसे में, यह उम्मीद की जा रही है कि प्रवासियों को वोट देने के लिए अपने गाँवों में अतिरिक्त दिनों तक रुकने के लिए राजनीतिक दलों से वित्तीय या अन्य तरह के सहयोग (मुआवजे) की आवश्यकता हो सकती है। सहयोग न मिलने पर उनके मतदान की संभावना कम हो जाएगी। यह स्थिति स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी भागीदारी के लिए सही नहीं है।
परिणामस्वरूप, अपेक्षाकृत विशेषाधिकार प्राप्त प्रवासी, जो बीजेपी के समर्थक माने जाते हैं, उनके लिए वोट डालना आसान हो सकता है, जबकि आर्थिक रूप से कमज़ोर प्रवासियों के लिए मतदान करना अधिक चुनौतीपूर्ण होगा।
सभी राजनीतिक दल प्रवासी वोटों को आकर्षित करने में जुटे हैं, लेकिन किसी ने भी उनके मताधिकार को सुनिश्चित करने के लिए इसे कानूनी अधिकार के रूप में संस्थागत बनाने की कोई इच्छा नहीं दिखाई है, जिससे वे राजनीतिक संरक्षण पर निर्भर न रहें।
70 शहरों में प्रवासी मजदूरों तक पहुंचने की कोशिश
बीजेपी ने मार्च से ही देश के 70 शहरों में प्रवासी मजदूरों तक पहुंचना शुरू कर दिया था। पार्टी कोविड-19 संकट के दौरान शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं की पोर्टेबिलिटी (एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाभ लेने की सुविधा) पर जोर दे रही है। प्रधानमंत्री मोदी की मॉरीशस यात्रा के दौरान भोजपुरी भाषा के सांस्कृतिक महत्व की सराहना करने को भी बिहारी प्रवासियों को साधने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। एनडीए की सहयोगी जेडीयू भी प्रवासियों को अपने पाले में बनाए रखने को लेकर चिंतित है, क्योंकि 2005 के चुनावों में इन वोटों ने पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाई थी।
आरजेडी ने पलायन को सरकारी विफलता से जोड़ा
आरजेडी ने राज्य से पलायन को सरकारी विफलता से जोड़ा है और "हर परिवार को सरकारी नौकरी" देने का वादा किया है, जिसका सीधा लक्ष्य प्रवासी मज़दूरों को लुभाना है। सहयोगी कांग्रेस ने भी "पलायन रोको, नौकरी दो" रैली के ज़रिए रोज़गार सृजन की मांग की है। आरजेडी अपने पारंपरिक यादव-मुस्लिम गठजोड़ का इस्तेमाल इन समुदायों के प्रवासियों को आकर्षित करने के लिए करेगी, जबकि महागठबंधन अपने संदेशों को सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय के व्यापक आख्यान के भीतर रखेगा।
प्रवासी वोटरों का विभाजन
राजनीतिक दल प्रवासियों को एक समान समूह के रूप में देखने के बजाय, उन्हें उनके सामाजिक और जातिगत समूहों के सदस्य के रूप में साधने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। बीजेपी उच्च जाति (सवर्ण) प्रवासियों पर दांव लगाएगी, जो उसके पारंपरिक समर्थक हैं।
एनडीए की ओर से प्रवासी श्रमिकों के बीच समर्थन जुटाने के लिए राष्ट्रीय मुद्दों पर जोर दिया जाता है। जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा में सुधार जैसे रक्षा और सुरक्षा के मुद्दों का ज़िक्र केवल देशभक्ति जगाने के लिए नहीं है, बल्कि यह उन प्रवासियों की चिंताओं को सीधे संबोधित करता है जो सीमावर्ती राज्यों में रोज़गार तलाशते हैं।
मतदान और त्योहारों का टकराव
चुनाव आयोग ने दिवाली और छठ पूजा के कुछ ही हफ्तों के भीतर मतदान की तारीखें तय की हैं। आयोग को उम्मीद है कि त्योहारों के लिए घर लौटने वाले प्रवासी रुककर वोट करेंगे। हालांकि, यह उम्मीद प्रवासियों की आर्थिक बाधाओं से टकराती है। काम से लंबी अनुपस्थिति का मतलब है मज़दूरी का नुक्सान, जिससे उनका घर लौटकर वोट देना मुश्किल हो सकता है।
ऐसे में, यह उम्मीद की जा रही है कि प्रवासियों को वोट देने के लिए अपने गाँवों में अतिरिक्त दिनों तक रुकने के लिए राजनीतिक दलों से वित्तीय या अन्य तरह के सहयोग (मुआवजे) की आवश्यकता हो सकती है। सहयोग न मिलने पर उनके मतदान की संभावना कम हो जाएगी। यह स्थिति स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी भागीदारी के लिए सही नहीं है।
परिणामस्वरूप, अपेक्षाकृत विशेषाधिकार प्राप्त प्रवासी, जो बीजेपी के समर्थक माने जाते हैं, उनके लिए वोट डालना आसान हो सकता है, जबकि आर्थिक रूप से कमज़ोर प्रवासियों के लिए मतदान करना अधिक चुनौतीपूर्ण होगा।
You may also like

CBSE: छूट न जाए मौका, सीबीएसई की इस स्कॉलरशिप के लिए फटाफट कर दें Apply, डिटेल्स यहां

बंगाल की खाड़ी में बन रहा चक्रवाती तूफान 'मोंथा', चेन्नै में होगी भारी बारिश, छठ पूजा पर यूपी-बिहार में भी दिखेगा असर! IMD ने क्या कहा?

Chhath Puja 2025: जाने छठी मैया से जुड़े छठ महापर्व के व्रत की विधि और इसका महत्व

आखिर क्यों तीसरे वनडे में नहीं खेले नीतीश रेड्डी? जानिए वजह

कनाडा ने अमेरिका के खिलाफ अपने उस विज्ञापन पर लगाई रोक, जिससे बिगड़ गए थे रिश्ते




