हेमंत राजौरा, चंडीगढ़ : कांग्रेस ने हरियाणा में लंबे समय से टल रहे संगठनात्मक बदलाव कर दिए हैं। पार्टी ने इस बार जाट-दलित समीकरण के पुराने प्रयोग को छोड़कर जाट-OBC पर दांव लगाया है। दक्षिण हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र से आने वाले वरिष्ठ नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री राव नरेंद्र सिंह को प्रदेश कांग्रेस कमिटी का नया अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधानसभा में विधायक दल के नेता की जिम्मेदारी दी गई है। कांग्रेस का यह कदम संगठन को सक्रिय करने और जातीय संतुलन साधने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
सोशल इंजीनियरिंग
राव नरेंद्र सिंह की नियुक्ति से कांग्रेस ने साफ संदेश दिया है कि वह यादव समुदाय को नेतृत्व में महत्व दे रही है। 80 के दशक में राव निहाल सिंह के बाद पहली बार किसी यादव नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। अहीरवाल बेल्ट, फरीदाबाद, पलवल, मेवात, गुड़गांव, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ जैसे जिलों को मिलाकर करीब 25 सीटें राज्य की राजनीति में अहम मानी जाती हैं। बीते दो चुनावों से इस इलाके में कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर रहा है। ऐसे में पार्टी ने यादव वोटरों को साधने के लिए राव नरेंद्र सिंह पर भरोसा जताया है। तीन बार विधायक रह चुके राव की छवि जमीनी नेता की है और क्षेत्र में उनका आधार मजबूत माना जाता है। काफी समय से खाली पड़े विधायक दल के नेता के पद पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नियुक्ति भी जातीय समीकरण का हिस्सा है।
जाट समुदाय में हुड्डा की गहरी पकड़
जाट समुदाय में हुड्डा की गहरी पकड़ है और वह लंबे समय से इस पद के दावेदार रहे हैं। संगठन में यादवों को और विधानसभा में जाटों को महत्व देकर कांग्रेस ने दो बड़े समुदायों को संतुलित करने की कोशिश की है। हरियाणा कांग्रेस का इतिहास गुटबाजी से भरा रहा है। भजनलाल तक पार्टी का संगठन मजबूत माना जाता था लेकिन उनके बाद अध्यक्ष BJP हरियाणा की सबसे बड़ी पार्टी है, जबकि कांग्रेस पिछले 11 साल से सत्ता से बाहर है।
पंजाब पर निगाहें
हरियाणा की स्थिति को पंजाब से जोड़कर भी देखा जा सकता है। हरियाणा में इंडियन नैशनल लोकदल थी तो पंजाब में अकाली दल। लेकिन कांग्रेस की आंतरिक खींचतान ने दोनों जगह तीसरी ताकत को स्पेस दे दिया। बहरहाल, हरियाणा कांग्रेस में 11 साल से संगठन विस्तार अटका हुआ था। राहुल गांधी ने जून में राज्य दौरे के दौरान संगठन पुनर्निर्माण पर जोर दिया था।
कई चुनौतियां
राव नरेंद्र सिंह की नियुक्ति इसी प्रक्रिया की अगली कड़ी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कैप्टन अजय यादव ने नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर नाराजगी जताई है। अब कांग्रेस के सामने पहली चुनौती गुटबाजी रोकने की है तो दूसरी सामाजिक संतुलन साधने की। यादव और जाटों के साथ दलित, पिछड़े और शहरी वोटरों को भी जोड़ना होगा। तीसरी बड़ी चुनौती BJP से मुकाबले की है, ताकि कांग्रेस सत्ता से बाहर रहने के लंबे सिलसिले को तोड़ सके।
सोशल इंजीनियरिंग
राव नरेंद्र सिंह की नियुक्ति से कांग्रेस ने साफ संदेश दिया है कि वह यादव समुदाय को नेतृत्व में महत्व दे रही है। 80 के दशक में राव निहाल सिंह के बाद पहली बार किसी यादव नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। अहीरवाल बेल्ट, फरीदाबाद, पलवल, मेवात, गुड़गांव, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ जैसे जिलों को मिलाकर करीब 25 सीटें राज्य की राजनीति में अहम मानी जाती हैं। बीते दो चुनावों से इस इलाके में कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर रहा है। ऐसे में पार्टी ने यादव वोटरों को साधने के लिए राव नरेंद्र सिंह पर भरोसा जताया है। तीन बार विधायक रह चुके राव की छवि जमीनी नेता की है और क्षेत्र में उनका आधार मजबूत माना जाता है। काफी समय से खाली पड़े विधायक दल के नेता के पद पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नियुक्ति भी जातीय समीकरण का हिस्सा है।
जाट समुदाय में हुड्डा की गहरी पकड़
जाट समुदाय में हुड्डा की गहरी पकड़ है और वह लंबे समय से इस पद के दावेदार रहे हैं। संगठन में यादवों को और विधानसभा में जाटों को महत्व देकर कांग्रेस ने दो बड़े समुदायों को संतुलित करने की कोशिश की है। हरियाणा कांग्रेस का इतिहास गुटबाजी से भरा रहा है। भजनलाल तक पार्टी का संगठन मजबूत माना जाता था लेकिन उनके बाद अध्यक्ष BJP हरियाणा की सबसे बड़ी पार्टी है, जबकि कांग्रेस पिछले 11 साल से सत्ता से बाहर है।
पंजाब पर निगाहें
हरियाणा की स्थिति को पंजाब से जोड़कर भी देखा जा सकता है। हरियाणा में इंडियन नैशनल लोकदल थी तो पंजाब में अकाली दल। लेकिन कांग्रेस की आंतरिक खींचतान ने दोनों जगह तीसरी ताकत को स्पेस दे दिया। बहरहाल, हरियाणा कांग्रेस में 11 साल से संगठन विस्तार अटका हुआ था। राहुल गांधी ने जून में राज्य दौरे के दौरान संगठन पुनर्निर्माण पर जोर दिया था।
कई चुनौतियां
राव नरेंद्र सिंह की नियुक्ति इसी प्रक्रिया की अगली कड़ी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कैप्टन अजय यादव ने नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर नाराजगी जताई है। अब कांग्रेस के सामने पहली चुनौती गुटबाजी रोकने की है तो दूसरी सामाजिक संतुलन साधने की। यादव और जाटों के साथ दलित, पिछड़े और शहरी वोटरों को भी जोड़ना होगा। तीसरी बड़ी चुनौती BJP से मुकाबले की है, ताकि कांग्रेस सत्ता से बाहर रहने के लंबे सिलसिले को तोड़ सके।
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