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तमिलनाडु वाली खांसी की दवा की जांच रिपोर्ट ने बढ़ा दी टेंशन, मध्य प्रदेश में बच्चों की मौत की केंद्र कर रहा जांच

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नई दिल्ली : मध्यप्रदेश और राजस्थान में बच्चों की मौतों के बाद खांसी की दवाओं पर उठे सवालों के बीच जांच का दायरा और गहरा गया है। शुरुआती जांच रिपोर्टों में राहत की बात यह सामने आई थी कि दोनों राज्यों से लिए गए कफ सिरप के सैंपल्स में डाईएथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल जैसे खतरनाक रसायन नहीं पाए गए। नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, सीडीएससीओ और राज्यों की एफडीए टीमों ने मौके से सैंपल लेकर जांच की थी। सभी रिपोर्टों ने इन दवाओं को सुरक्षित बताया।



डाईएथिलीन ग्लाइकॉल की अधिक मात्रा

लेकिन अब नए घटनाक्रम में तमिलनाडु एफडीए द्वारा कांचीपुरम स्थित स्रेशन फार्मा के मैन्युफैक्चरिंग यूनिट से लिए गए कोल्ड्रिफ कफ सिरप के सैंपल्स की जांच में डाईएथिलीन ग्लाइकॉल निर्धारित सीमा से अधिक मात्रा में पाया गया है। यह जांच मध्यप्रदेश सरकार के अनुरोध पर कराई गई थी। मध्यप्रदेश में तमिलनाडु से बने कफ सीरप की सप्लाई की गई थी। 3 अक्टूबर की देर शाम सामने आई इस रिपोर्ट ने एक बार फिर चिंता बढ़ा दी है।



मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार ने जांच का दायरा बढ़ा दिया है। अब छह राज्यों में 19 दवा निर्माण इकाइयों पर रिस्क बेस्ड इंस्पेक्शन शुरू कर दिया गया है। इन निरीक्षणों के जरिए यह पता लगाया जाएगा कि दवाओं की गुणवत्ता में गड़बड़ी किन कारणों से हो रही है और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए क्या कदम उठाए जाएं।



मंत्रालय ने जारी की एडवाइजरी

इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सतर्क रहने और बच्चों में खांसी की दवाओं का विवेकपूर्ण उपयोग करने की सलाह दी है। मंत्रालय ने एडवाइजरी में स्पष्ट किया है कि दो साल से छोटे बच्चों को किसी भी प्रकार का कफ सिरप बिल्कुल नहीं दिया जाना चाहिए।



वहीं पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए भी सामान्य रूप से इन दवाओं की सिफारिश नहीं की जाती। विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकांश मामलों में बच्चों की खांसी बिना दवा के भी ठीक हो जाती है, इसलिए पानी, आराम और सहायक उपचार को प्राथमिकता देना चाहिए।



तमिलनाडु की रिपोर्ट से बढ़ी चिंता

फिलहाल मल्टी-डिसिप्लिनरी टीम मौतों के पीछे की असली वजह तलाशने में जुटी हुई है। टीम में आईसीएमआर, एनआईवी, नीरी, सीडीएससीओ और एम्स नागपुर के विशेषज्ञ शामिल हैं। टीम विभिन्न सैंपल और कारणों की जांच कर रही है ताकि यह साफ हो सके कि बच्चों की मौत दवा से जुड़ी है या किसी अन्य संक्रमण और पर्यावरणीय कारणों से हुई है।



कुल मिलाकर जहां मध्यप्रदेश से मिली जांच रिपोर्टों ने कुछ हद तक राहत दी है। वहीं, तमिलनाडु की रिपोर्ट ने चिंता बढ़ा दी है और अब आगे की जांच पर सभी की निगाहें टिकी हैं।

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