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मां दंतेश्वरी को निमंत्रण देने पहुंचा राजपरिवार, डोली में सवार होकर दशहरा देखने आएंगी माता, 617 साल से चली आ रही परंपरा

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दंतेवाड़ा: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का दशहरा विश्व प्रसिद्ध है। बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी को निमंत्रण दिया गया है। बस्तर राज परिवार के सदस्य ने यह निमंत्रण भेजा है। शारदीय नवरात्र की पंचमी को राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव दंतेवाड़ा पहुंचे और पूजा अर्चना कर दशहरा में शामिल होने का निमंत्रण दिया है। यह परंपरा लगभग 617 सालों से चली आ रही है।



पहले चांदी के पत्रक से भेजा जाता था निमंत्रण

बस्तर दशहरे का निमंत्रण हमेशा से राजपरिवार के सदस्य ही होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि दंतेश्वरी माता मंदिर को पहले चांदी के निमंत्रण पत्रक छपवाकर भेंट किया जाता था। जबकि अब चमकीले कपड़ों निमंत्रण पत्र चढ़ाया जाता है। जिस कपड़े का उपयोग किया जाता है उसमें निमंत्रण स्याही से नहीं लिखा जाता है। जानकारी के अनुसार कुमकुम से निमंत्रण पत्र छापकर माता को भेंट किया जाता है।



पंचमी के दिन ही भेजा जाता है निमंत्रण

ऐसी मान्यता है कि पंचमी के दिन ही माता को निमंत्रण दिया जाता है। इसके बाद माता पालकी में सवार होकर बस्तर दशहरे में शामिल होने के लिए आती हैं। माता के बस्तर दशहरे में शामिल होने की रीति रिवाज के साथ पूजा की जाती है। इस बार इस परंपरा को बस्तर रियासत के युवराज कमलचंद भंजदेव ने निभाई है। वह पंचमी के दिन शाही परिवार के सदस्यों के साथ माता को निमंत्रण देने पहुंचे।



उन्होंने कहा कियह परंपरा सालों पुरानी है। पंचमी के दिन मां दंतेश्वरी को न्योता दिया जाता है। इसे मंगल न्योता कहते है। राजपरिवार का सदस्य होने के नाते मैं एक पत्रक लेकर आता हूं, मां दंतेश्वरी और मां मावली से निवेदन करता हूं कि वे बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए जगदलपुर आएं। जब वे आएंगी तो मैं उनकी पूजा-अर्चना करूंगा, उनका स्वागत करूंगा।



भव्य होता है माता का स्वागत

मान्यता के अनुसार, पहले माता को सलामी दी जाती है। उसके बाद माता को विराजित किया जाता है। मां डोली में सवार होकर आती हैं। इस दौरान बस्तर के सभी देवी-देवता माता के स्वागत के लिए पहुंचते हैं। राज परिवार के सदस्य माता की पूजा करते हैं इसके साथ ही सभी बस्तरवासी मां के दर्शन के लिए आते हैं। उसके बाद मां बस्तर का दशहरा देखती हैं। बस्तर राज परिवार के सदस्य खुद डोली उठाकर राजमहल लाते है। जहां मावली परघाव की रस्म भी अदा की जाती है। जब डोली दोबारा उठाई जाती है, तो उसी समय बस्तर दशहरा का समापन होता है।

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