भिंड: पिछले दस सालों से जैविक खेती करने वाले किसान रामगोपाल गुर्जर पूरी तरह से रासायनिक खेती बंद कर चुके हैं। वह भिंड जिले के सिरसौद गांव के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि जैविक खेती किसानों के लिए हर तरह से फायदेमंद है। इसमें लागत कम लगती है और कमाई ज्यादा होती है। शुरुआत में थोड़ी मुश्किल होती है, लेकिन एक साल की मेहनत के बाद लागत और मेहनत दोनों कम हो जाते हैं। कितनी है रामगोपाल गुर्जर की आमदनीजैविक खेती करने से फसल की पैदावार भी बढ़ जाती है। आधुनिक तरीके से जैविक खेती करने पर कम जमीन में कम लागत के साथ ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। रामगोपाल साल में चार फसलें लेकर एक हेक्टेयर में लगभग 10 से 12 लाख रुपये की आमदनी कर लेते हैं। जैविक खेती से मिट्टी को पोषण मिलता है, फसल अच्छी होती है और बीमारियों से भी बचा जा सकता है। रासायनिक खाद के इस्तेमाल के होते हैं साइड इफेक्टरामगोपाल गुर्जर पहले रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते थे। इससे लागत बहुत ज्यादा हो जाती थी और मुनाफा कम होता था। फसलों में हर साल कोई न कोई रोग लगता था, जिससे निपटने के लिए रासायनिक खाद का ज्यादा इस्तेमाल करना पड़ता था। खाद लेने के लिए परेशानी होती थी और कर्ज भी लेना पड़ता था। बाद में प्रधानमंत्री कृषि कार्ड बनने से बैंक का कर्ज रहने लगा था। यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने दिया आईडियाराजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने रामगोपाल को जैविक तरीके से खेती करने की सलाह दी। उन्होंने इस सलाह को माना और उन्हें इसका फायदा हुआ। जैविक तरीके से पैदा होने वाली फसल को खाने से कई तरह की बीमारियों से छुटकारा मिल गया और फसल की कीमत भी अच्छी मिलने लगी। शुरुआत के दो साल हुई परेशानीशुरुआत के दो साल पैदावार कम हुई, लेकिन दो साल बाद खेत की मिट्टी पूरी तरह से जैविक हो गई। इसके बाद फसल की पैदावार बढ़ने लगी और लागत भी कम हो गई। अब उन्हें रासायनिक खाद की जरूरत नहीं होती। गाय का मूत्र और गोबर ही रासायनिक खाद का काम करते हैं। इससे फसल को मिट्टी से वे सभी पोषक तत्व मिलते हैं जो उसमें होने चाहिए। इस तरीके से करते हैं खेतीरामगोपाल बताते हैं कि उनके पास एक हेक्टेयर जमीन है, जिसमें 5 बीघा जमीन होती है। वे इसमें जैविक तरीके से फसल की पैदावार करते हैं।
- 10 बिस्वा भूमि में गन्ना की फसल है और 10 बिस्वा में नींबू के पेड़ लगाए हैं। इससे उन्हें लगभग डेढ़ लाख रुपये सालाना की आमदनी हो जाती है।
- 4 बीघा जमीन में आलू की फसल करते हैं। इसकी बुवाई 15 अक्टूबर के आसपास की जाती है और फरवरी-मार्च में फसल प्राप्त कर लेते हैं। चार बीघा जमीन में लगभग 4 से साढ़े 4 क्विंटल आलू की पैदावार हो जाती है, जिससे 4 से साढ़े 4 लाख रुपये की आमदनी होती है।
- मार्च महीने में जमीन जब खाली होती है तो उसमें सब्जी लगाते हैं। इसमें खीरा, ककड़ी, खरबूजा, मिर्ची, कद्दू, प्याज, तोरई, लौकी आदि की फसल लगाते हैं। यह फसल मई में आ जाती है और जुलाई तक चलती है। इससे उन्हें लगभग 3 लाख रुपये की आमदनी होती है।
- जुलाई में जमीन खाली होते ही ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग आदि की फसल लगाते हैं। इससे भी करीब एक से डेढ़ लाख रुपये की आमदनी हो जाती है।
- खेत की मेड़ पर अमरूद और आम के कुछ पेड़ लगा रखे हैं, जिनसे भी उन्हें 10 से 20 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है।
- गाय, भैंस का गोबर
- गोमूत्र
- गुड़
- मिट्टी
- बेकार या सड़े दाल वगैरह
- लकड़ी का बुरादा
- एक प्लास्टिक का ड्रम लें, उसमें देसी गाय, भैंस वगैरह का गोबर डालें।
- अब इसमें गोमूत्र मिला लें और फिर इसमें इस्तेमाल में न आने वाले गुड़ को डालें।
- इसमें पिसी हुई दालों और लकड़ी का बुरादा डालकर मिला दें और फिर इस मिश्रण को 1 किलो मिट्टी में सान लें।
- ध्यान रखना है कि इस ड्रम पर धूप न पड़े. इसे छाया में रखें.
- बढ़िया खाद पाने के लिए इस घोल को हर दिन एक बार जरूर हिलाते-मिलाते रहें.
- 20 दिन बाद यह जैविका खाद बन कर तैयार हो जाएगी.
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