इस्लामाबाद, 2 मई . पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने माना है कि उनके देश का अतीत आतंकी संगठनों को समर्थन देने का रहा है. भुट्टो की इस टिप्पणी से कुछ दिन पहले ही देश के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा था कि इस्लामाबाद दशकों तक आतंकवाद को मदद देने का ‘गंदा काम’ करता रहा है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भुट्टो ने 1 मई को स्काई न्यूज से बातचीत में कहा, “जहां तक रक्षा मंत्री (आसिफ) ने कहा, मुझे नहीं लगता कि यह कोई रहस्य है कि पाकिस्तान का एक अतीत है.”
भुट्टो ने पहले अफगान युद्ध के दौरान मुजाहिदीनों को आर्थिक मदद करने और समर्थन देने में पाकिस्तान की सक्रिय भूमिका की ओर भी इशारा किया. उन्होंने कहा, “हमने पश्चिमी शक्तियों के साथ समन्वय और सहयोग से ऐसा किया. पाकिस्तान चरमपंथ की एक के बाद एक लहरों से गुजरा… हमने नुकसान उठाया.”
बिलावल भुट्टो जरदारी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के अध्यक्ष हैं, जो पाकिस्तान की सत्तारूढ़ पार्टी का हिस्सा है.
हालांकि, भुट्टो ने जोर देकर कहा कि हाल के वर्षों में स्थिति बदल गई है. उन्होंने कहा, “यह सच है कि यह (आतंकवाद) हमारे इतिहास का दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा है… लेकिन हमने इससे सबक भी सीखा है.” उन्होंने ‘बदले हालात’ के लिए आंतरिक सुधारों और सैन्य अभियानों को श्रेय दिया, खासकर अपनी मां बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद, जिससे चरमपंथी तत्वों को लेकर राज्य की नीति पलट गई.
भुट्टो ने कहा, “हमने हर दूसरे दिन आतंकवादी हमले देखे… पाकिस्तान ने इन समूहों के खिलाफ गंभीर और सफल कार्रवाई की है.”
पिछले हफ्ते ही स्काई न्यूज के एक इंटरव्यू में आसिफ से पूछा गया था कि क्या पाकिस्तान का आतंकवादी संगठनों को “समर्थन, ट्रेनिंग और फंडिंग” देने का लंबा इतिहास रहा है. उन्होंने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि ऐसा ही है. लेकिन उन्होंने इसका दोष पश्चिम पर डालने की कोशिश की.
आसिफ ने साक्षात्कारकर्ता से कहा, “हम करीब तीन दशक से अमेरिका और ब्रिटेन समेत पश्चिमी देशों के लिए यह ‘गंदा काम’ कर रहे हैं…यह एक गलती थी और हमें इसकी कीमत चुकानी पड़ी, इसीलिए आप मुझसे यह कह रही हैं. अगर हम सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध में और 9/11 के बाद की जंग में शामिल नहीं होते, तो पाकिस्तान का ट्रैक रिकॉर्ड बेदाग होता.”
कुछ ही दिनों के अंतराल में ये दूसरा ऐसा मौका है जब पाकिस्तान के किसी शीर्ष नेता ने आतंकवाद को समर्थन देने की बात मानी है. यह पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान पर बढ़ते दबाव और भारत के आक्रमक रुख से उपजी घबराहट को जाहिर करता है. दोनों नेताओं के बयान दर्शाते हैं कि पाकिस्तान को यह डर सता रहा है कि भारत कहीं कोई बड़ी सैन्य कार्रवाई न कर दे.
आतंकियों ने 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर में एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल – पहलगाम स्थित बैसरन घाटी में लोगों (ज्यादातर पर्यटक) पर अंधाधुंध गोलियां चला दी थीं. हमले में कम से कम 26 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. प्रतिबंधित आतंकवादी समूह ‘लश्कर-ए-तैयबा’ से जुड़े ‘टीआरएफ’ ने इस हमले की जिम्मेदारी ली.
पहलगाम हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है. नई दिल्ली ने इस्लामबाद के खिलाफ कई सख्त कूटनीतिक और रणनीतिक कदम उठाए हैं. इनमें 1960 के सिंधु जल समझौते को तुरंत प्रभाव से निलंबित करने, अटारी इंटिग्रेटेड चेक पोस्ट को बंद करने, पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा सेवाओं को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने, जैसे कई कदम उठाए हैं.
भारत के इन फैसलों के बाद पाकिस्तान ने शिमला समझौते को स्थगित करने और भारतीय उड़ानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद करने जैसे कुछ कदम उठाए हैं.
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एमके/
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