New Delhi, 30 सितंबर . शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर देश भर में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए विभिन्न मंदिरों में पहुंच रहे हैं, खासकर शक्तिपीठों पर भारी भीड़ देखी जा रही है. India और विश्व भर में कुल 51 सिद्ध शक्तिपीठ हैं, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण शक्तिपीठ पंजाब, Haryana और Rajasthan में स्थित हैं. ये शक्तिपीठ न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पूजनीय हैं, बल्कि इनसे जुड़ी मान्यताएं और पौराणिक कथाएं भी इनकी महत्ता को और बढ़ाती हैं.
Haryana के थानेसर में स्थित सावित्री शक्तिपीठ या मां भद्रकाली मंदिर India के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है. यह मंदिर द्वैपायन झील के समीप स्थित है. पुराणों के अनुसार, माता सती का दाहिना टखना इस स्थान के सामने के कुएं में गिरा था. इसी कारण इसे सावित्रीपीठ, देवीकूप और कालिकापीठ भी कहा जाता है. यहां सती को सावित्री और भगवान शिव को स्थानु महादेव के नाम से पूजा जाता है. मंदिर के आसपास का क्षेत्र स्थानेश्वर या थानेसर के नाम से विख्यात है, क्योंकि सावित्री के पति का नाम स्थानु था. इस मंदिर में घोड़े दान करने की परंपरा महाIndia काल से चली आ रही है. कहा जाता है कि पांडवों ने विजय की प्राप्ति के उपलक्ष्य में यहां घोड़े दान किए थे.
पंजाब के जालंधर में स्थित स्तनपीठ मां त्रिपुरमालिनी देवी मंदिर या देवी तालाब मंदिर के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि इसी स्थान पर मां सती का बाया वक्ष (स्तन) गिरा था. यह शक्तिपीठ रेलवे स्टेशन से मात्र 1 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में है. यहां की देवी की शक्ति त्रिपुरमालिनी और भैरव के भयंकर रूप की पूजा की जाती है. यह शक्तिपीठ त्रिगर्त तीर्थ के नाम से भी विख्यात है. हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से मां की कृपा प्राप्त करने के लिए यहां आते हैं.
Rajasthan के अजमेर के पास पुष्कर में स्थित मणिबंध शक्तिपीठ को गायत्री शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है. यह शक्तिपीठ देवी सती की कलाइयों के गिरने के स्थान पर स्थित है. यहां देवी सती को गायत्री स्वरूप में पूजा जाता है. यह शक्तिपीठ गायत्री मंत्र साधना का प्रमुख केंद्र भी है. अजमेर से लगभग 11 किलोमीटर दूर गायत्री पहाड़ियों पर बसा यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है.
भरतपुर के निकट विराट नगर में स्थित देवी अंबिका शक्तिपीठ भी 51 सिद्ध शक्तिपीठों में से एक है. यहां देवी सती के पैर की उंगलियां गिरी थीं. यह मंदिर देवी अंबिका को समर्पित है और भगवान शिव की पूजा अमृतेश्वर स्वरूप में की जाती है. jaipur से लगभग 90 किलोमीटर दूर यह स्थान नवरात्रि, दीपावली जैसे प्रमुख त्योहारों पर श्रद्धालुओं से भर जाता है.
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पीआईएम/एएस
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