मेलबर्न, 7 अक्टूबर . ऑस्ट्रेलिया द्वारा संचालित एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार, 2023 में भीषण गर्मी से लगभग एक लाख मौत मानव-जनित जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हैं.
Tuesday को जारी इस अध्ययन में पाया गया कि 2023 में दुनिया भर में भीषण गर्मी के कारण लगभग 1,78,486 लोगों की मौत हुई. इन मौतों में से करीब 54 प्रतिशत, यानी लगभग 97,000 मौतें मानव-जनित जलवायु परिवर्तन की वजह से हुई हैं.
यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी की अगुवाई में किया गया है, जिसमें 67 देशों और 2,013 जगहों के तापमान और मृत्यु आंकड़ों का विश्लेषण किया गया.
अध्ययन में पता चला कि 2023 का साल अब तक का सबसे गर्म साल था, जो पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.45 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. इस तापमान वृद्धि ने हीटवेव की तीव्रता और अवधि दोनों को बढ़ाया, जिससे विशेष रूप से उत्तरी गोलार्ध के उपोष्णकटिबंधीय और मध्यम जलवायु वाले इलाकों में हृदय और श्वसन संबंधी बीमारियों से पीड़ित लोगों की मौतें बढ़ीं.
दक्षिणी यूरोप में गर्मी की लहरों के कारण प्रति मिलियन 120 लोगों की मौत दर्ज की गई, जो विश्व के अन्य हिस्सों की तुलना में सबसे अधिक थी. इसके बाद पूर्वी और पश्चिमी यूरोप में भी उच्च मौत दर देखी गई. विशेषज्ञों का कहना है कि इन क्षेत्रों में लगातार बढ़ती गर्मी ने लोगों की सेहत पर, खासकर बुजुर्गों और पहले से बीमार लोगों पर गहरा असर डाला.
यह अध्ययन बताते हैं कि अगर मानव गतिविधियों से होने वाला जलवायु परिवर्तन नियंत्रित नहीं किया गया, तो भविष्य में ऐसी ही हीटवेव देखने को मिल सकती हैं. शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि ऐसे हालात में जरूरी है कि Governmentें और समुदाय स्वास्थ्य के लिए उचित तैयारी करें और जलवायु संकट को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाएं.
हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई Government ने 15 सितंबर को अपनी पहली राष्ट्रीय जलवायु जोखिम रिपोर्ट जारी की. इसमें बताया गया कि अगर ग्लोबल वार्मिंग 3 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया, तो ऑस्ट्रेलिया में 2050 तक 15 लाख से अधिक घर समुद्र के बढ़ते जलस्तर के खतरे में होंगे. 2090 तक यह संख्या 30 लाख से भी अधिक हो जाएगी. इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इस तापमान वृद्धि के कारण गर्मी से होने वाली मौतें दोगुनी से ज्यादा हो जाएंगी.
जलवायु परिवर्तन, यानी लंबे समय में तापमान और मौसम के पैटर्न में बदलाव, प्राकृतिक कारणों से भी हो सकता है, जैसे सूरज की गतिविधि में बदलाव या बड़े ज्वालामुखी विस्फोट. लेकिन 1800 के बाद से इंसानों की गतिविधियां, खासकर जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, तेल और गैस जलाने की वजह से, जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण बन गई हैं.
जीवाश्म ईंधनों के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसें निकलती हैं, जिससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो पृथ्वी के तापमान को बढ़ाती हैं. इससे ग्लोबल वार्मिंग होती है. कृषि, उद्योग, परिवहन, भवन निर्माण और भूमि उपयोग जैसे कई क्षेत्र इन गैसों के प्रमुख स्रोत हैं.
गर्मी की लहरें न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं, बल्कि यह फसलों और पानी के स्रोतों पर भी बुरा असर डालती हैं. इससे खाद्य सुरक्षा पर संकट पैदा हो सकता है और जीवनयापन मुश्किल हो सकता है. इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाना बेहद जरूरी है.
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पीके/एएस
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