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एक महिला की पलकों में मिली 250 जूँ

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Dr Mrugank Patel सूरत की 66 साल की गीताबेन को लगभग ढाई महीने से पलकों में तेज़ दर्द और खुजली हो रही थी

हाल ही में गुजरात के अमरेली ज़िले के सावरकुंडला के एक अस्पताल में एक अनोखा और दुर्लभ मामला सामने आया.

सूरत की 66 साल की गीताबेन इस अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में इलाज के लिए आई थीं. उन्हें लगभग ढाई महीने से पलकों में तेज़ दर्द और खुजली हो रही थी. उनकी आंखें लाल थीं, उन्हें नींद भी नहीं आ रही थी.

अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मृगांक पटेल ने उन्हें देखा तो पता चला कि उनकी पलकों में एक या दो नहीं बल्कि 250 जिंदा जूँ थीं.

प्रकाश के प्रति जूँ की संवेदनशीलता और चिकित्सा विज्ञान की कुछ सीमाओं के कारण, डॉक्टर को बिना इंजेक्शन के जूँ हटाने का ऑपरेशन करना पड़ा, जो दो घंटे तक चला.

चिकित्सकीय भाषा में इस स्थिति को फ़्थिरियासिस पैल्पेब्रारम कहते हैं. यह क्यों होता है, इसके लक्षण क्या हैं और ऐसी स्थिति से बचने के लिए क्या करना चाहिए?

मरीज़ को हुआ क्या था? image BBC डॉक्टरों ने दो घंटों में जूँ बाहर निकालीं

लल्लूभाई सेठ आरोग्य मंदिर अस्पताल के नेत्र विभाग के डॉक्टर मृगांक पटेल के मुताबिक गीताबेन जब ओपीडी में इलाज के लिए आईं तो उनकी मुख्य शिकायत यह थी कि उनकी पलकों में ढाई महीने से बहुत खुजली हो रही थी.

डॉक्टर मृगांक पटेल कहते हैं, "पलकों पर रूसी होना खुजली का एक बहुत ही आम कारण है, लेकिन पलकों पर जूँ होना बहुत ही असामान्य है. जब हमने ध्यान से देखा, तो हमने पलकों पर जूँओं को घूमते हुए देखा."

"गोल जूँ के अंडे भी देखे गए. यह एक अनोखा परजीवी है. इस स्थिति को चिकित्सकीय भाषा में 'फ़्थिरियासिस पैल्पेब्रारम' कहा जाता है."

"उस समय हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मरीज़ यह सुनकर घबरा तो नहीं जाएंगी कि उनकी आंखों में जूँ हैं, इसलिए हमने उनकी काउंसलिंग भी की. हमने मरीज़ को समझाया कि इसमें ज़्यादा समय लग सकता है क्योंकि जुँओं की संख्या बहुत ज़्यादा थीं."

परिवार के लिए भी यह स्थिति बहुत कठिन थी. उन्हें सूरत के कुछ अस्पतालों में पहले भी दिखाया गया था, लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिला था.

मरीज़ गीताबेन के बेटे अमित मेहता ने बीबीसी न्यूज़ गुजराती से बताया, "माँ की आँखों में खुजली रहती थी. वह रात को सो नहीं पाती थीं. सूरत के कुछ अस्पतालों में दिखाने के बाद भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ. फिर जब हमने उन्हें सावरकुंडला में दिखाया तो डॉक्टर मृगांक ने बताया कि माँ की आँख में जूँ हैं, जिन्हें निकालना होगा."

डॉक्टर मृगांक कहते हैं, "यह परजीवी (जूँ) हमारे शरीर का खून पीता है. चूंकि पलकों की त्वचा शरीर के बाकी हिस्सों की तुलना में बेहद पतली होती है, इसलिए यह परजीवी (जूँ) आसानी से खून पी सकता है."

"फिर ये जूँएं पलकों को पकड़कर उन पर बैठ जाती हैं, जिससे मरीज़ को खुजली होने लगती है. और जब मरीज़ इन जूँओं को हटाने की कोशिश करता है, तो वे आसानी से नहीं निकलतीं."

वह बताते हैं कि इस प्रकार की जूँ प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती हैं और प्रकाश में इधर-उधर घूमने लगती हैं, इसलिए इन्हें हटाने के लिए आपको मैकफ़र्सन नाम के एक विशेष उपकरण की मदद लेनी होती है. फिर, आपको हर जूँ को पकड़कर बाहर निकालना होता है.

डॉक्टर मृगांक पटेल कहते हैं, "पहले मरीज़ को टॉपिकल एनेस्थीसिया दिया गया, ताकि उसे जूँ निकालने के दर्द से राहत मिल सके. इसमें लगभग दो घंटे लगे."

"प्रक्रिया पूरी होने के बाद, मरीज़ को आराम महसूस होने लगा. उनकी खुजली कम हो गई थी. इसके बाद, हमने मरीज़ की काउंसलिंग की."

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दुर्लभ मामला image BBC सावरकुंडला स्थित लल्लूभाई सेठ आरोग्य मंदिर अस्पताल ने इसे एक दुलर्भ मामला बताया

डॉक्टर मृगांक कहते हैं, "भारत में ऐसे मामले देखे गए हैं. लगभग पांच महीने पहले जब यह मामला पहली बार आया था, तब मैंने एक शोध पत्र का भी अध्ययन किया था. यह एक दुर्लभ मामला है."

एक जटिल प्रक्रिया में, डॉक्टर मृगांक पटेल और उनकी टीम ने महिला की दोनों पलकों से कुल 250 से ज़्यादा जूँ और 85 से ज़्यादा अंडे निकाले. उसके अगले ही दिन, महिला को जांच के लिए नेत्र ओपीडी में वापस लाया गया. उनकी आँखें पूरी तरह से साफ़ और स्वस्थ थीं.

अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर प्रकाश कटारिया ने बीबीसी न्यूज़ गुजराती को बताया, "मेरा 21 साल का अनुभव है, लेकिन मैंने आज तक ऐसा मामला नहीं देखा."

"मरीज़ ढाई महीने से परेशान थी और सो नहीं पा रही थीं. हालांकि वह पहले सूरत में दो-तीन डॉक्टरों को दिखा चुकी थीं, लेकिन उसका निदान नहीं हुआ, जो इस मामले की गंभीरता को दिखाता है."

लगभग पांच महीने पहले, सावरकुंडला में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था. उस समय एक बच्चे की ऊपरी पलक पर जूँ थी. वह आसानी से निकल गई और मरीज़ सिर्फ़ डेढ़ घंटे में ही ठीक हो गया.

अमेरिकी राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र के अनुसार, फ़्थिरियासिस पैल्पेब्रारम एक दुर्लभ चिकित्सीय स्थिति है जिसमें फ़्थिरस प्यूबिस नाम की जूँ पलकों पर आक्रमण करती है.

यह संक्रमण आमतौर पर किसी चीज़ के संपर्क में आने से फैलता है और इसके लक्षणों में गंभीर खुजली, पलकों का लाल होना और नींद न आना शामिल हैं. इस संक्रमण का निदान मुश्किल हो सकता है क्योंकि यह सामान्य नेत्र संक्रमण जैसा नहीं होता.

नेशनल सेंटर फॉर बायटेक्नॉलजी इन्फॉरमेशन (एनसीबीआई) वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, फ़्थिरियासिस पैल्पेब्रारम, जिसे "फ़्थिरियासिस सिलिएरिस" या "सिलिअरी फ़्थिरियासिस" भी कहा जाता है, पलकों का एक बाह्य परजीवी है, जिसे क्रैब लाइस के नाम से भी जाना जाता है.

आँखों में जूँ कैसे आ सकती है? image BBC/Dr Mrugank Patel

अहमदाबाद के ध्रुव अस्पताल के नेत्र विशेषज्ञ डॉक्टर हर्षद अगाजा ने बीबीसी न्यूज़ गुजराती को बताया, "यह एक बहुत ही दुर्लभ बीमारी है. अक्सर ऐसा संक्रमण के कारण हो सकता है, जैसे- जब साफ़-सफ़ाई का ध्यान न रखा जाए या मरीज़ अपनी आंखें रगड़ता हो."

"मैंने कई साल पहले अहमदाबाद के शारदाबेन अस्पताल में ऐसा ही एक मामला देखा था. लेकिन यह मामला बहुत दुर्लभ है."

डॉक्टर मृगांक कहते हैं, "यह संक्रमण इंसानों के साथ-साथ मवेशियों में भी होता है. अगर हम साफ़-सफ़ाई पर ध्यान न दें, तो ये जूँ बिस्तर की चादर, तकिये, रज़ाई या कपड़ों में मौजूद हो सकती हैं. इसके अलावा जब कोई जंगल या मवेशियों के संपर्क में आता है, तो ये शरीर से चिपक जाती हैं और सिर से पलकों तक पहुंच सकती हैं."

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अलाप बाविशी ने बीबीसी न्यूज़ गुजराती को बताया, "यह मामला दुर्लभ है और गुजरात में पहली बार इसकी सूचना मिली है. ये जूँ दक्षिण भारत में अधिक आम हैं और मार्च-अप्रैल में वहां देखी जाती हैं."

"यह मामला उतना जटिल नहीं है, लेकिन आंख से जूँ निकालने की प्रक्रिया बहुत जटिल और सूक्ष्म है. कारण यह है कि कोई भी दवा इनके लार्वा को नहीं मारती. इसलिए, जूँओं को एक-एक करके पकड़कर आँख से निकालना पड़ता है.

"ऐसी कोई दवा नहीं है जो उन्हें पूरी तरह से मार सके. इसके अलावा, चूँकि वे रोशनी से दूर भागते हैं, इसलिए उन्हें टॉर्च की रोशनी डाले बिना निकालना पड़ता है, जो मुश्किल है."

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सिर की जूँ और पलक की जूँ में क्या अंतर है? image Getty Images सिर की जूँ और आंखों की जूँ अलग-अलग होती हैं

डॉक्टर अलाप बाविशी ने बीबीसी न्यूज़ गुजराती को बताया, "सिर की जूँ और आंखों की जूँ अलग-अलग होती हैं. आंखों की जूँ आंखों के सफेद भाग में घूमती हैं और रोशनी से दूर भागती हैं. ये जूँ पलक के अंदर रहती है जहां बिल्कुल अंधेरा होता है."

"फ़सल कटाई के मौसम में सफाई की कमी के कारण इस प्रकार की जूँ उड़कर आँखों में प्रवेश कर सकती हैं. चूंकि ये दर्दनाक नहीं होतीं, इसलिए शुरुआती अवस्था में इनका पता लगाना मुश्किल होता है."

डॉक्टर मृगांक कहते हैं, "ये जूँ पारदर्शी होती हैं. जब ये त्वचा से चिपक जाती हैं, तो इन्हें देखना मुश्किल होता है. जूँ के अंदर घूम रहे खून को माइक्रोस्कोप से देखा जा सकता है. इससे जूँ के शरीर के अंगों का भी अंदाज़ा मिलता है."

पलकों पर जूँ के लक्षण image Getty Images इसमें पलकें सूज सकती हैं

डॉक्टर मृगांक का कहना है कि मरीज़ सूरत में रहती थीं और उनका सावरकुंडला में भी घर था. सावरकुंडला वाला घर ज़्यादातर बंद रहता था. इसलिए जूँओं के होने का कारण घर का बंद होना और घर के आस-पास मवेशियों का आना-जाना हो सकता है.

डॉक्टर मृगांक का कहना है कि इसके लक्षणों में आंखों में दर्द, आंखों में लगातार खुजली और नींद न आना शामिल हो सकते हैं.

इससे बचने के लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

डॉक्टर हर्षद अगाजा कहते हैं, "दिन में दो से तीन बार हाथ और खासकर मुंह धोना चाहिए. इससे बच्चे और बुज़ुर्ग सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं. युवाओं में यह समस्या कम होती है."

डॉक्टर प्रकाश कटारिया कहते हैं, "सबसे पहले तो अगर किसी भी व्यक्ति को आंखों को लेकर ऐसी कोई भी शंका हो, तो उसे जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और अगर आराम न मिले, तो किसी अनुभवी डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. आंखों की समस्याओं को हल्के में लेने से भविष्य में ज़्यादा नुकसान हो सकता है. घर में साफ़-सफ़ाई बनाए रखना भी ज़रूरी है."

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