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जीएसटी में कटौती: ज़रूरी सवाल और उनके जवाब

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AFP via Getty Images बुधवार को गुड्स और सर्विसेज़ टैक्स यानी जीएसटी को लेकर कई बड़ी घोषणाएँ की गई हैं.

बुधवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुड्स और सर्विसेज़ टैक्स यानी जीएसटी दरों में बदलाव की घोषणा की. नई दरें 22 सितंबर से लागू होंगी.

जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक में जो नई दरें मंज़ूर हुई हैं उसके तहत अब 12 फ़ीसदी और 28 फ़ीसदी के स्लैब को ख़त्म कर 5 फ़ीसदी और 18 फ़ीसदी कर दिया गया है.

एक तरफ़ जीएसटी दरों को आम इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं पर राहत दी गई है जबकि कुछ चुनिंदा वस्तुओं पर जीएसटी को 40 फ़ीसदी तक बढ़ाया गया है.

सिगरेट, ज़र्दा जैसे तंबाकू उत्पाद, बिना प्रोसेस्ड तंबाकू और बीड़ी पर मौजूदा जीएसटी दरें और कंपनसेशन सेस पहले जैसे लागू रहेंगे. नई दरें बाद में अधिसूचित की जाएंगी.

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सीजीएसटी अधिनियम 2017 के तहत जीएसटी के पंजीकरण की सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया है.

नई दरों की घोषणाओं के बाद कुछ सवाल उठे हैं, आइए जानते हैं कि अधिकारियों ने इन सवालों के क्या जवाब दिए हैं.

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सभी दवाओं को जीएसटी से मुक्त क्यों नहीं किया गया? image BBC

सभी दवाओं पर 5% की रियायती जीएसटी दर तय की गई है जबकि कुछ जीवनरक्षक दवाओं पर जीएसटी दर शून्य कर दी गई है.

अगर दवाओं को पूरी तरह जीएसटी मुक्त कर दिया जाता, तो निर्माता/डीलर इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा नहीं कर पाते.

इससे उनकी टैक्स देनदारी और उत्पादन लागत बढ़ जाती. और यह बोझ उपभोक्ताओं/मरीज़ों पर ऊंची कीमतों के रूप में पड़ सकता था, जिससे यह क़दम उल्टा असर डालने वाला होता.

अर्थशास्त्री और दिल्ली में 35 साल से चार्टर्ड अकाउंटेंट डीके मिश्रा ने बीबीसी हिंदी से कहा, "नई दरों में कुछ मेडिकल उपकरण, सर्जिकल उपकरण, चश्मा आदि को अफ़ोर्डेबल यानी किफ़ायती बनाने की कोशिश की गई है. रोज़मर्रा की ज़रूरत बन चुकी मेडिकल सुविधाओं में लोगों को राहत मिलेगी."

छोटी कारों पर संशोधित जीएसटी दर क्या है? image BBC

सभी छोटी कारों पर जीएसटी दर 28% से घटाकर 18% कर दी गई है.

यहां छोटी कारों से मतलब है- पेट्रोल, एलपीजी या सीएनजी की वो कारें जिनकी इंजन क्षमता 1200 सीसी तक और लंबाई 4000 मिमी तक हो.

इसमें वे डीज़ल कारें भी शामिल हैं जिनकी इंजन क्षमता 1500 सीसी और लंबाई 4000 मिमी तक हो.

वर्तमान में मिड-साइज़ और बड़ी कारों पर 28% जीएसटी और 17-22% तक कंपनसेशन सेस (मुआवज़ा उपकर) लगता है, जिससे इन पर कुल टैक्स 45-50% तक पहुंचता है.

अब 1500 सीसी से अधिक इंजन क्षमता या 4000 मिमी से लंबाई वाली सभी मिड-साइज़ और बड़ी कारों पर 40% जीएसटी दर लागू होगी.

इसके अलावा, यूटिलिटी वाहनों की श्रेणी में आने वाले सभी मोटर वाहन – जैसे स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल (एसयूवी), मल्टी यूटिलिटी व्हीकल (एमयूवी), मल्टी-पर्पज़ व्हीकल (एमपीवी) या क्रॉस-ओवर यूटिलिटी व्हीकल (एक्सयूवी), जिनकी इंजन क्षमता 1500 सीसी से अधिक, लंबाई 4000 मिमी से अधिक और ग्राउंड क्लियरेंस 170 मिमी या उससे अधिक है, उन पर भी बिना सेस के 40% जीएसटी दर लागू होगी.

डीके मिश्रा कहते हैं, "छोटी और बड़ी कारों के टैक्स स्लैब में बदलाव को रैसनेलाइजेशन यानी तार्किक बनाने के तहत किया गया है. यह अफ़ोर्डेबिलिटी के ऊपर है. आम तौर पर छोटी कारें मध्य वर्ग की ज़रूरत बन गई हैं और उसमें बचत का मतलब है लोगों के पास अन्य उपभोक्ता वस्तुओं पर खर्च के लिए बचत बढ़ेगी."

उनके अनुसार, "सरकार का मानना है कि देश के प्रति व्यक्ति आय के अनुसार महंगी गाड़ियां जो लोग ख़रीद सकते हैं, उन्हें दूसरी तरह से टैक्स देना चाहिए."

मोटरसाइकिल पर जीएसटी दर क्या है? image BBC

350 सीसी तक की इंजन क्षमता वाली मोटरसाइकिलों पर 18% जीएसटी दर लागू होगी.

इससे अधिक इंजन क्षमता वाली मोटरसाइकिलों पर जीएसटी दर को 28% से बढ़ा कर 40% कर दिया गया है.

साइकिल और उसके पुर्ज़ों पर जीएसटी दर कितनी घटी है?

साइकिल और उसके पुर्ज़ों पर जीएसटी दर 12% से घटाकर 5% कर दी गई है.

डीके मिश्रा कहते हैं, "पहले साइकिल हर व्यक्ति की ज़रूरत होती थी, अब उसकी जगह मोटरसाइकिल ने ली है. लेकिन एक ऐसा वर्ग है जो महंगी बाइक ख़रीद सकता है और उसके लिए टैक्स दे सकता है, ऐसा सरकार का मानना है."

40% वाले स्लैब को 'विशेष दर' क्यों कहा जाता है? image BBC

विशेष दर केवल कुछ चुनिंदा वस्तुओं पर लागू होती है, इनमें व्यसन (सिन गुड्स) और कुछ लग्ज़री वस्तुएं शामिल हैं. इसलिए इसे विशेष दर कहा जाता है.

इनमें से अधिकतर वस्तुओं पर जीएसटी के अलावा कंपनसेशन सेस भी लगाया जाता था. अब कंपनसेशन सेस को जीएसटी में मिला दिया गया है, जिससे अधिकांश वस्तुओं पर टैक्स का बोझ समान बना रहे.

कुछ अन्य वस्तुओं और सेवाओं पर विशेष दर इसलिए लगाई गई है क्योंकि उन पर पहले से ही 28% की सबसे ऊंची जीएसटी दर लागू थी.

डीके मिश्रा कहते हैं, "विशेष दरें ऐसी चीज़ों पर लगाई गई हैं जो व्यसन के तौर पर इस्तेमाल होती हैं और सरकार नहीं चाहती कि उन्हें बढ़ावा मिले जैसे तंबाकू आदि. इन्हें सिन गुड्स भी कहते हैं. जो महंगे सामान हैं, जिनपर संपन्न वर्ग टैक्स दे सकता है, उन्हें भी विशेष दरों के तहत लाया गया है."

चालान बाद में हुआ तो दर क्या होगी? image BBC

अगर भुगतान, टैक्स दर में बदलाव के बाद प्राप्त होता है, तो सप्लाई का समय, भुगतान प्राप्त होने की तारीख़ या चालान जारी होने की तारीख़ को माना जाएगा.

अगर किसी पंजीकृत व्यक्ति को माल या सेवा की आपूर्ति मिलती है और उस पर तत्कालीन जीएसटी लगाई गई है, तो वह इनपुट टैक्स क्रेडिट का हक़दार होगा.

गैर-अल्कोहल पेय पदार्थों को 40% के स्लैब में रखा गया है?

हाल ही में जीएसटी को अधिक तार्किक बनाया गया है. यानी समान वस्तुओं को एक ही दर पर रखा जाए ताकि ग़लत वर्गीकरण और विवाद की स्थिति न बने.

'अन्य गैर-अल्कोहल पेय पदार्थों' पर इसी सिद्धांत को लागू किया गया है.

लेकिन फ्रूट ड्रिंक या फलों के रस वाली कार्बोनेटेड पेय पदार्थों पर जीएसटी दर बढ़ाई गई है.

इन वस्तुओं पर जीएसटी के अलावा कंपनसेशन सेस भी लगाया जाता था, जिसे समाप्त कर दिया गया और टैक्स दर बढ़ा दी गई ताकि टैक्स का बोझ पहले जैसा ही बना रहे.

डीके मिश्रा कहते हैं, "सेस को समाप्त करने का काम जीएसटी के पूरे ढांचे को तार्किक बनाने के लिए किया गया है. नई दरों से जो राजस्व में 48 हज़ार करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया गया है, उसकी भरपाई करने की भी कोशिश की गई है विशेष दरें लागू करके."

सिर्फ़ कुछ भारतीय ब्रेड पर जीएसटी दर क्यों बदली गई? image AFP via Getty Images पनीर पर जीएसटी को घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कम किया गया.

साधारण ब्रेड पहले से ही छूट में थी, जबकि पिज़्ज़ा ब्रेड, रोटी, पराठा आदि पर अलग-अलग दरें लागू थीं.

अब सभी भारतीय ब्रेड, चाहे उन्हें किसी भी नाम से पुकारा जाए, उन्हें छूट दे दी गई है.

पनीर और अन्य चीज़ पर अलग टैक्स व्यवस्था क्यों है?

दरों को तार्किक बनाने से पहले बिना पैकेट और बिना लेबल वाले पनीर पर पहले से ही शून्य टैक्स दर लागू थी.

इसलिए बदलाव केवल पैकेज्ड और लेबल वाले पनीर पर किया गया है. पनीर भारतीय घरेलू चीज़ उद्योग का हिस्सा है, जो ज़्यादातर छोटे पैमाने पर बनाया जाता है.

यह क़दम भारतीय घरेलू चीज़ उद्योग को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है.

कृषि मशीनरी/उपकरण पर जीएसटी घटाया गया है? image BBC

कृषि मशीनरी/उपकरण पर पहले की अपेक्षा टैक्स कम किया गया है.

स्प्रिंकलर, ड्रिप इरीगेशन सिस्टम, कृषि, बागवानी आदि में मिट्टी तैयार करने या खेती करने की मशीनें, लॉन या खेल के मैदान रोलर, कटाई या मड़ाई की मशीनें, घास काटने की मशीनों पर जीएसटी दरें 12% से घटाकर 5% कर दिया गया है.

अन्य कृषि, बागवानी, वानिकी, पोल्ट्री-पालन या मधुमक्खी-पालन मशीनरी, कम्पोस्टिंग मशीन आदि पर पहले की 12% जीएसटी दरों को घटाकर 5% कर दिया गया है.

किसानों को राहत देते समय यह भी ज़रूरी है कि घरेलू मैन्युफ़ैक्चरिंग पर नकारात्मक असर न पड़े.

जीएसटी से मुक्त कर देने से इन वस्तुओं के निर्माता/डीलर कच्चे माल पर चुकाए गए जीएसटी पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा नहीं कर पाते, जिसका भार अंततः उपभोक्ताओं पर पड़ता.

डीके मिश्रा ने कहा, "किसानों के लिए वर्तमान दरों में हर तरफ़ से प्रयास किया गया है. कुछ जगहों पर तो 18 प्रतिशत तक दरें थीं. इसका पूरे कृषि क्षेत्र पर सकारात्मक असर पड़ेगा."

फ़ेस पाउडर और शैम्पू पर जीएसटी घटाने का कारण क्या है? image AFP via Getty Images

लिक्विड सोप और बार सोप में अंतर रखा गया है. टॉयलेट सोप बार पर नई जीएसटी दर 5% तय की गई है. इसका उद्देश्य निचले मध्यम वर्ग और ग़रीब तबकों का मासिक खर्च कम करना है.

ये वस्तुएं लगभग सभी वर्गों के लोगों के लिए रोज़मर्रा के इस्तेमाल की हैं.

हालांकि महंगे फ़ेस पाउडर और शैम्पू बेचने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां या लग्ज़री ब्रांड्स भी इससे लाभान्वित होंगे, लेकिन दरों को तार्किक बनाने का उद्देश्य टैक्स ढांचे को और सरल बनाना है.

ब्रांड या कॉस्मेटिक के मूल्य के आधार पर टैक्स लगाना टैक्स ढांचे को जटिल बना देगा.

डीके मिश्रा कहते हैं, "सरकार ने रोज़मर्रा के इस्तेमाल होने वाली चीज़ों पर टैक्स कम किया है. चाहे पाउडर, टूथपेस्ट, नैपकिन, डायपर, ब्रेड, जैम, पास्ता, डायबिटिक प्रोडक्ट, चॉकलेट, पेस्ट्री, कॉर्नफ़्लेक्स, आइसक्रीम आदि हो."

कोयले पर जीएसटी दर बढ़ने से बिजली की क़ीमत पर असर पड़ेगा?

पहले कोयले पर 5% जीएसटी के साथ 400 रुपये प्रति टन का कंपनसेशन सेस लगाया जाता था.

जीएसटी काउंसिल ने सेस ख़त्म करने की सिफारिश की है और इसलिए इस दर को जीएसटी में मिला दिया गया है. उपभोक्ताओं पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं डाला गया है.

स्वास्थ्य और जीवन बीमा पॉलिसी पर टैक्स क्या है? image AFP via Getty Images

जीवन बीमा पर सुझाई गई छूट के दायरे में सभी व्यक्तिगत जीवन बीमा पॉलिसियां शामिल हैं.

इनमें टर्म, यूएलआईपी, एंडोमेंट योजनाएं और इनकी रीइंश्योरेंस सेवाएं शामिल हैं.

स्वास्थ्य बीमा पर सुझाई गई छूट के दायरे में सभी व्यक्तिगत स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियां आती हैं, जिनमें फैमिली फ़्लोटर प्लान और वरिष्ठ नागरिकों की पॉलिसियां शामिल हैं.

इनकी रीइंश्योरेंस सेवाएं भी इसमें शामिल हैं.

डीके मिश्रा कहते हैं, "लोग बहुत पहले से मांग करते रहे हैं कि जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी कम करके 5 प्रतिशत किया जाए या शून्य किया जाए. सरकार ने शून्य करके बड़ी राहत दी है."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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