भारत में डॉक्टर की सलाह के बिना सीधे केमिस्ट की दुकान से दवाएं खरीदने का चलन आम है. ख़ासकर बुख़ार, खांसी, ज़ुकाम जैसी स्थितियों में.
ऐसे मामलों में लोग ज़्यादातर इंटरनेट से पढ़कर या किसी से पूछकर सीधे दुकान पर दवा खरीदने पहुंच जाते हैं या फिर दुकान पर बैठे शख़्स से ही सलाह लेकर दवा या सिरप ले लेते हैं.
लेकिन कई बार यह ढीला रवैया ख़तरनाक भी साबित हो सकता है.
जैसे हाल में मध्य प्रदेश और राजस्थान में बच्चों की मौत के बाद कफ़ सिरप की गुणवत्ता को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं. यहां तक कि मध्य प्रदेश ने तमिलनाडु में बनने वाले कोल्ड्रिफ़ कफ़ सिरप पर प्रतिबंध भी लगा दिया है.
इस वक़्त कफ़ सिरप को लेकर देश में तो बहस जारी ही है, दूसरे देशों में एक्सपोर्ट होने वाले भारतीय कफ़ सिरप को लेकर भी समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं.
अफ़्रीकी देश गांबिया में 66 बच्चों की मौत के मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 2022 में भारत की एक दवा कंपनी के चार कफ़ और कोल्ड सिरप को लेकर चेतावनी जारी की थी.

तब भी काफ़ी शोर शराबा हुआ था.
ख़ैर, मध्य प्रदेश और राजस्थान की हालिया घटनाओं के मद्देनज़र केंद्र सरकार ने बच्चों के लिए कफ़ सिरप के इस्तेमाल से संबंधित एडवाइज़री जारी की है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने सलाह दी है कि दो साल और उससे कम उम्र के बच्चों को खांसी-ज़ुकाम की दवाएं नहीं दी जानी चाहिए.
पांच साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों के लिए भी आमतौर पर ऐसी दवाओं की सलाह नहीं दी जाती, लेकिन अगर देते हैं तो डोज़ का ध्यान रखना चाहिए और कई तरह की दवाइयों को एक साथ लेने से बचना चाहिए.
मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के हेल्थ सर्विसेज़ के डायरेक्टर को इस बारे में पत्र भी लिखा है.
इसमें कहा गया है कि बच्चों में खांसी आमतौर पर ख़ुद ही ठीक हो जाती है और इसके लिए अक़्सर दवाओं की ज़रूरत नहीं पड़ती.
ऐसे में ये जानना अहम हो जाता है कि आख़िर कफ़ सिरप कब लेने चाहिए, लेना चाहिए भी या नहीं, जब न लेने की सलाह दी जाए तो कौन से विकल्प अपनाने चाहिए और अगर सिरप खरीदना हो, तो खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है.
कफ़ सिरप लेना कब ज़रूरी हो जाता है?सर गंगा राम अस्पताल दिल्ली में पीडियाट्रिशियन डॉ धीरेंद्र गुप्ता का कहना है कि ज़्यादातर सर्दी-ज़ुकाम वाली खांसी अपने आप ठीक हो जाती है. आप भाप लेकर, शरीर को पर्याप्त आराम देकर, गुनगुना पानी पीकर,सलाइन नेसल ड्रॉप्स के ज़रिए खांसी को कंट्रोल कर सकते हैं.
सिरप की ज़रूरत हमेशा नहीं पड़ती.
दिल्ली स्थित मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्रोफ़ेसर और कम्युनिटी मेडिसिन की निदेशक डॉक्टर सुनीला गर्ग का भी यही मानना है.
वो कहती हैं, ''बच्चों को ज़्यादातर वक़्त खांसी, एलर्जी के कारण होती है और इसके लिए ज़रूरी नहीं कि कफ़ सिरप दिया जाए. बहुत अच्छे डायलेटर्स भी आ गए हैं बाज़ार में जो हमारी छाती की नलियों को खोलते हैं इसलिए डॉक्टर की सलाह लेना बहुत ज़रूरी है.
''हो सकता है कि वो कफ़ सिरप लिखें ही नहीं क्योंकि कफ़ सिरप में मौजूद सेडेटिव्स आपको बस थोड़ी राहत देते हैं, खांसी ठीक नहीं करते. इसलिए डॉक्टरी सलाह के बाद ही पता चलता है कि आपको इन्हेलर की आवश्यकता है, रूम ह्यूमिडिफ़ाई करने से काम बन सकता है (यानी गरम पानी से रूम को गरम रखना) या फिर कोई दवाई लेनी है या कफ़ सिरप.''
डॉ धीरेंद्र के मुताबिक़ अगर खांसी दो हफ़्ते से ज़्यादा वक़्त से बनी हुई है, साथ ही कुछ और लक्षण भी हैं, जैसे सांस का तेज़ चलना, तेज़ बुखार, डायट का कम हो जाना, सुस्ती महसूस होना तो डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें.
ख़ासकर जब मरीज़ बच्चे की उम्र तीन महीने से कम हो, तब डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए.
खांसी के लिए कौन से घरेलू नुस्खे कारगरडॉक्टर्स का कहना है कि हल्की खांसी या वायरल में पहले घरेलू उपाय ही करने चाहिए. जैसे गुनगुना पानी पीना, भाप लेना और एक साल से बड़े बच्चों को थोड़ा शहद देना.
विशेष तौर पर जब खांसी इतनी हो रही हो कि रात में सोना दूभर हो जाए, कोई एलर्जी वजह हो, या फिर एसिडिटी की वजह से खांसी हो रही हो. तभी डॉक्टर के पास जाएं और उनकी सलाह पर ही दवा या कफ़ सिरप लें.
डॉक्टर हमेशा कफ़ सिरप की डोज़ बच्चे के वज़न और उम्र के हिसाब से ही तय करते हैं, इसलिए उसका ध्यान रखें. सिरप को चम्मच की बजाए, दवा के कप या डोज़िंग चम्मच में ही दें.
किस उम्र में सिरप देना सुरक्षित है?डॉक्टर धीरेंद्र का कहना है कि चार साल से कम उम्र के बच्चों को ओवर-दी- काउंटर यानी बिना प्रिस्क्रिप्शन मिलने वाला सिरप खुद से न दें.
बच्चा दो साल या उससे कम उम्र का हो तो और सावधानी बरतें. डॉक्टर की जांच और प्रिस्क्रिप्शन के बिना किसी कॉम्बिनेशन सिरप का इस्तेमाल न करें.
शहद केवल एक साल से ऊपर के बच्चों को दें, उससे छोटे बच्चों में इंफेक्शन का ख़तरा रहता है.
कफ़ सिरप ख़रीदते समय किन बातों का ध्यान रखेंडॉक्टर सुनीला गर्ग कहती हैं कि बिना प्रिस्क्रिप्शन यानी डॉक्टर की पर्ची के कफ़ सिरप नहीं लेना चाहिए क्योंकि कफ़ सिरप कई तरह के आते हैं और केमिस्ट अपने मुनाफ़े के हिसाब से कोई भी कफ़ सिरप आपको पकड़ा सकते हैं इसलिए न खुद डॉक्टर बनें और न ही फ़ार्मासिस्ट को (डॉक्टर) बनाएं.
अगर फिर भी आप ओवर-दी-काउंटर कफ़ सिरप खरीदने चले जाते हैं तो हमेशा लाइसेंस वाले फ़ार्मेसी पर ही जाएं.
कफ़ सिरप की बोतल पर लिखे गए इंग्रेडिएंट्स यानी सिरप में किन-किन सामग्रियों का इस्तेमाल हुआ है, ध्यान से पढ़ें.
विश्व स्वास्थ्य संगठन कई बार चेतावनी दे चुका है कि डाइइथिलीन ग्लाइकोल और इथिलीन ग्लाइकोल (डीईजी या ईजी) से दूषित सिरप, बच्चों में किडनी फे़लियर और मौत तक का कारण बन सकते हैं.
वहीं क्लोरफे़नेरमाइन और डेक्सट्रोमेथोर्फे़न भी बच्चे पर दुष्प्रभाव डाल सकते हैं.
डॉ धीरेंद्र गुप्ता के मुताबिक़ कॉम्बिनेशन कफ़ सिरप में केमिकल्स जैसे फ़ेनिलेफ़्राइन, एम्ब्रोक्सोल, लीवोसिट्रिज़िन का भी इस्तेमाल मिल जाता है. इनके कुछ साइड इफ़ेक्ट्स हो सकते हैं इसलिए डॉक्टरों की सलाह ज़रूरी हो जाती है.

डॉ गर्ग कहती हैं कि एक जागरूक कंज़्यूमर के नाते आप फ़ार्मासिस्ट से पूछें कि कफ़ सिरप का क्वालिटी कंट्रोल यानी उसकी गुणवत्ता की जांच हुई है या नहीं.
जैसे आज सभी परिवार इस चीज़ को लेकर जागरूक हैं कि बच्चों को टीका लगना चाहिए वैसे ही अगर इन दवाइयों और सिरप को लेकर भी जागरूकता आएगी तो कंपनियां भी सतर्क होंगी.
वहीं डॉ गुप्ता सलाह देते हैं कि दवा या कफ़ सिरप लेते समय बिल ज़रूर रखें, सिरप बनाने वाली कंपनी का नाम, बैच नंबर, मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट नोट करें क्योंकि अगर किसी कफ़ सिरप के बैच को जांच के लिए वापस मंगाया जाएगा तो यह जानकारी काम आएगी.
सिरप का रंग अगर ठीक न लगे या उसमें कोई पार्टिकल दिख रहा हो, दवाई का सॉल्ट नीचे बैठ गया हो, और अगर बैच नंबर नहीं लिखा हो या मिटा दिया गया हो तो वह न लें.
दवाई पर ड्रग लाइसेंस नंबर लिखा होना ज़रूरी है अगर नहीं लिखा है तो वह भी नहीं लेनी चाहिए.
अगर आपके राज्य के स्वास्थ्य विभाग या केंद्रीय औषधि नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने किसी ख़ास सिरप या बैच को लेकर चेतावनी दी है, तो उसे कभी न खरीदें या इस्तेमाल करें.
हर्बल कफ़ सिरप सुरक्षित है?डॉक्टर धीरेंद्र का कहना है कि हर्बल लिखे होने का मतलब कतई ये नहीं कि वो हमेशा सुरक्षित हों या उसमें कोई हानिकारक पदार्थ न इस्तेमाल हुआ हो. इनमें भी दूषित केमिकल्स हो सकते हैं. इसलिए हमेशा भरोसेमंद कंपनियों की दवाएं खरीदें.
नकली सिरप से क्या परेशानियां हो सकती हैं?नकली सिरप से सांस लेने में तकलीफ़,उल्टी,सुस्ती या बेहोशी,तेज़ सांस, दौरा, पेशाब बहुत कम या न होना,पेट दर्द, दिमाग पर भी असर हो सकता है, हार्ट बीट रुक सकती है.
इससे मिलते-जुलते कोई भी लक्षण नज़र आएं तो जल्द से जल्द डॉक्टर के पास जाएं.
बीबीसी हिन्दी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
- मध्य प्रदेश और राजस्थान में बच्चों की मौत का कफ़ सिरप से क्या है नाता, एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?
- कफ़ सिरप किस उम्र के बच्चों को देना सुरक्षित है?
- भारतीय कंपनी के कफ़ सिरप से गांबिया में 66 बच्चों की मौत, जानिए इससे जुड़े हर सवाल का जवाब
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