भारत की धरोहरों और ऐतिहासिक नगरीयों में जयपुर का नाम विशेष सम्मान से लिया जाता है। राजस्थान की राजधानी जयपुर को दुनिया भर में “गुलाबी नगरी” के नाम से जाना जाता है। आज यह शहर आधुनिकता और परंपरा का अद्भुत संगम है, लेकिन इसके पीछे छुपा हुआ है एक गौरवशाली इतिहास, जो कला, संस्कृति, स्थापत्य और राजशाही की अनोखी कहानियाँ बयाँ करता है।
जयपुर की स्थापनाजयपुर शहर की नींव 18वीं सदी में रखी गई थी। महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1727 में इस नगरी की स्थापना की। इससे पहले उनकी राजधानी आमेर (Amber) थी, लेकिन बढ़ती जनसंख्या, पानी की कमी और सुरक्षा की दृष्टि से उन्होंने एक नए शहर की कल्पना की। जयसिंह द्वितीय ज्योतिष, गणित और विज्ञान में गहरी रुचि रखते थे, इसलिए उन्होंने शहर की योजना वास्तुशास्त्र और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित की।
नियोजित शहर का अनोखा नमूनाजयपुर भारत का पहला ऐसा शहर माना जाता है जिसे पूरी तरह नियोजित तरीके से बसाया गया। इसकी सड़कों को चौड़ा रखा गया और शहर को नौ खंडों (नक्शों) में बाँटा गया। यह विशेषता इसे अन्य भारतीय शहरों से अलग बनाती है। उस समय के बंगाली वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने इस शहर की डिज़ाइन तैयार की थी। चौपड़, बाजार और राजमहल इस तरह बनाए गए कि लोगों की सुविधाओं और सुरक्षा दोनों का ध्यान रखा जा सके।
गुलाबी रंग की परंपराजयपुर को “पिंक सिटी” या “गुलाबी नगरी” क्यों कहा जाता है, इसके पीछे भी एक रोचक इतिहास जुड़ा है। 1876 में वेल्स के प्रिंस (जो बाद में किंग एडवर्ड सप्तम बने) जयपुर यात्रा पर आए थे। उस समय महाराजा सवाई रामसिंह ने पूरे शहर को गुलाबी रंग से रंगवाया था क्योंकि गुलाबी रंग भारतीय परंपरा में आतिथ्य और स्वागत का प्रतीक माना जाता है। तब से आज तक यह परंपरा कायम है और जयपुर की पहचान विश्व पटल पर गुलाबी नगरी के रूप में होती है।
स्थापत्य और विरासतजयपुर अपने भव्य किलों, महलों और मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। सिटी पैलेस, हवा महल, जंतर-मंतर, नाहरगढ़ किला, आमेर किला और जयगढ़ किला इसकी ऐतिहासिक धरोहरों का हिस्सा हैं।
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हवा महल को “पैलेस ऑफ विंड्स” भी कहा जाता है। इसकी पाँच मंज़िलों वाली इमारत में 953 खिड़कियाँ (झरोखे) बनी हैं, जिनसे राजघराने की महिलाएँ बाहर की गतिविधियाँ देख सकती थीं।
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जंतर मंतर, जो सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित खगोलीय वेधशाला है, आज यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल है।
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सिटी पैलेस राजपूताना शाही जीवन और मुग़ल स्थापत्य का अनोखा संगम है।
इतिहास के साथ-साथ जयपुर अपनी संस्कृति और परंपराओं के लिए भी जाना जाता है। यहाँ की लोककला, कठपुतली नृत्य, घूमर और कालबेलिया नृत्य पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। जयपुर के बाज़ार अपने हस्तशिल्प, लाख की चूड़ियों, नीली पॉटरी और राजस्थानी आभूषणों के लिए मशहूर हैं।
युद्ध और राजनीति का इतिहासजयपुर का इतिहास केवल स्थापत्य तक सीमित नहीं रहा है। यह शहर कई युद्धों, संधियों और राजनीतिक घटनाओं का गवाह रहा है। मुगलों के समय में आमेर और जयपुर के राजाओं का साम्राज्य से घनिष्ठ संबंध रहा। सवाई जयसिंह द्वितीय अकबर और औरंगजेब के दरबार से भी जुड़े रहे। अंग्रेजों के समय में जयपुर राजघराना ब्रिटिश राज से संधि कर चुका था, लेकिन उन्होंने अपनी संस्कृति और प्रशासन को बचाए रखा।
आधुनिक जयपुरआजादी के बाद जयपुर राजस्थान की राजधानी बना और धीरे-धीरे यह पर्यटन और उद्योग का प्रमुख केंद्र बन गया। 2019 में यूनेस्को ने जयपुर को “World Heritage City” का दर्जा दिया, जिससे इसकी ऐतिहासिक पहचान और मजबूत हुई।
धार्मिक महत्वजयपुर धार्मिक दृष्टि से भी विशेष महत्व रखता है। गोविंद देव जी मंदिर, गलता जी (बंदर वाला मंदिर) और बिरला मंदिर यहाँ के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं। हर साल हजारों श्रद्धालु और पर्यटक इन स्थलों पर दर्शन के लिए आते हैं।
जयपुर की पहचानआज जयपुर न केवल राजस्थान की शान है बल्कि भारत की पहचान भी है। हर साल लाखों विदेशी पर्यटक इसकी ऐतिहासिक धरोहरें देखने आते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाला जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल भी इस शहर को साहित्य और संस्कृति की राजधानी बना चुका है।
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